सोमवार, 11 दिसंबर 2017

बिखरी हुई है ज़िंदगी...नीतू ठाकुर


बिखरी हुई है ज़िंदगी 
टूटे हुए है सपने 
न है कोई सहारा 
और ना ही कोई अपने 
चारों तरफ अँधेरा 
गर्दिश में हैं सितारे 
धुंधला गये हों जैसे 
 दुनिया के सब नज़ारे 
न खोने का गम है 
न पाने की चाहत 
न तन को सकूँ है 
न मन को है राहत 
  ना  मै मरा हूँ और 
ना हूँ मै ज़िंदा 
तड़पता है जैसे 
कैद में परिंदा 
जाने किस उम्मीद में 
ये साँस चल रही है 
थोड़ा सा धैर्य रखने का 
दम भर रही है 
सजा बन गई है 
अब ज़िंदगी हमारी 
होने लगा है अब तो 
एक एक पल भारी 
    - नीतू ठाकुर 

6 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन में ऐसे पल आते हैं पर समय के साथ ये दूर भी हो जाते हैं ... मन की अवस्था है ये ...
    अवसाद के गहरे पलों को लिखा है ...

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  2. मायूसियाँ जब हावी हो जाती है तो मन की यागी दशा होती है |सार्थक शाब्दिक चित्रण| प्रिय नीतू जी -- सस्नेह शुभकामना |

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  3. जीवन के कुछ मायूस पलों का सुंदर चित्रण किया है नीतू जी आपने़ ।

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  4. हर इन्सान खुशी‎ और गम के सफर से जरुर गुजरता है ,दुख वाले भावों को कुशलता से उकेरा है आपने .

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  5. बेहतरीन अभिव्यक्ति
    उम्दा रचना

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