नवगीत
कोरोना
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मापनी~ 16/16
कैद हुये पिंजरे में पँछी,
आज विषैली चली हवाएं।
पग आहट को सड़कें तरसी,
गूंज रही गलियों में आहें॥
1
हुए अछूते अपने प्रियजन,
आँख दूर से बरस रही है।
उँगली की कंपन कहती है,
आज छुअन को तरस रही है।
ईद होलिका स्मृतियाँ जागी
मिलने को अब तरसी बाहें
2
पूछ रही भारत की गलियाँ,
लक्ष्मण रेखा खींची किसने।
देख लॉक डाउन के रस्ते,
शांत डगर गुंजाई जिसने।
कागे बोल रहे थे जिस पथ,
कोयल कूक सुनना चाहें
3
कटे कटे सब लोग लगें अब,
बैर बिना भी उच्च दूरियाँ।
लाशों के अंबार लगे पर,
स्वतंत्रता पर चलती छुरियाँ।
बिना कफ़न मृत देह पड़े है,
बाट निहारे कब दफनाएं।
4
अखबारों की सुर्खी बनते,
जब रोगी के प्राण हैं हरते।
रोग शत्रु कोरोना भीषण,
नाम मात्र सुनकर सब डरते।
अंतिम दर्शन बिन जग छूटा,
नीर बहाती व्याकुलताएँ।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंघर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
कोरोना से बचें।
भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सम्वत 2077 की हार्दिक शुभकामनाएं,
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
सामयिक विषय पर अद्भुद व्यंजना, विरोधाभास की अनुपम छटा
बधाई एवं शुभकामनाएं
अपना और परिवार का ध्यान रखें .....
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3652 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क