गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मधुमास : नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत
मधुमास
नीतू ठाकुर 'विदुषी' 

मापनी 13/11

विरह अग्नि दहके बदन
भटक रही थी श्वास
आज प्राण अटके हुये 
ढूंढे एक उजास

1
कलियों का गुंजन सुना
भ्रमर महकते खूब 
शुष्क नहीं तृण एक फिर
चमक उठी हर दूब
लदी खड़ी वह मंजरी 
दृश्य मनोरम पास

2
नृत्य मोर का देखता
हरा भरा उद्यान
पैर देख आहत हुए
गूँगा कोकिल गान
तितली पंख पसारती
पाकर प्रिय आभास 

3
पुलकित हर्षित है नलिन
करता कीच विलाप
विरह बाण की चोट से
मन करता संताप
*उमड़ घुमड़ छाता रहा*
*हृदय प्रीत मधुमास*

4
मधुमासी बहती हवा
छेड़ रही है राग
चंदन से लिपटे हुये 
पूछ रहे कुछ नाग
शान्त चित्त होता तभी
मिले अगर विश्वास ।।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!!
    हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब नवगीत।

    जवाब देंहटाएं

  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(११-०४-२०२०) को 'दायित्व' (चर्चा अंक-३६६८) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं

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