कठिन है मार्ग जीवन का हमारा।
भयंकर सा दिखे जिसका नजारा।।
भटकता रोटियों की आस में जो।
बने वो क्या किसी का आज प्यारा।।
सभी को सीख उत्तम दे गया यूँ।
लड़ा जब युद्ध में हर शत्रु मारा।।
अधूरा पत्र पढ़कर रो पड़ा वो।
लिखा कड़वा बड़ा उत्तर करारा।।
बुझाने चल पड़ी है प्यास जग की।
जटाओं से निकलकर एक धारा।।
सिमट कर रह गया है देहरी तक।
हमारे स्वप्न का अस्तित्व सारा।।
लुभाता है सदा विदुषी सभी को।
तुम्हारी लेखनी का स्वाद खारा।।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'