इस दुनिया के नक्शे पर
एक छोटा सा अस्तित्व हमारा
झूठे भ्रम में जिंदा है जो
करता रहता मेरा तुम्हारा
बिना वजह ही लड़ते रहते
भूल के मानव धर्म हमारा
ढूंढ रहा है खुद ही खुद को
जाने क्यों व्यक्तित्व हमारा
सत्य,अहिंसा का पथ छोड़ा
भटक रहा है स्वार्थ हमारा
जन्मे थे हम किस कारण से ?
पूछ रहा दायित्व हमारा
चमक धमक में अंधी दुनिया
ज्ञान का सागर लगता खारा
दो दो पैसे में बिकता है
अजर अमर साहित्य हमारा
जब अपने ही बच्चे अपनी
संस्कृति का अपमान करें
जन्म दाता माता पिता को
तानों से बेजान करें
क्या थे तुम क्या बन बैठे हो
अपने अहम में तन बैठे हो
लगते हैं सब तुच्छ तुम्हें क्यों ?
पूछ रहा भगवान हमारा
- नीतू ठाकुर
(चित्र साभार -गूगल )