बुधवार, 18 अप्रैल 2018

हमें जहाँ की कहाँ पड़ी है .... नीतू ठाकुर


मरती है तो मर जाने दो 
हमें जहाँ की कहाँ पड़ी है 
पागल है लड़की की माँ 
जो न्याय की खातिर जिद पे अड़ी है 
शोक प्रदर्शन खत्म हो चुका 
अब घरवालों को सहने दो 
प्रेम नगर के वासी हैं हम 
प्रेम नगर में रहने दो 
बहन, बेटियाँ बाजारों में 
बिकती हैं तो बिकने दो
सुंदर और सजीले तन पर
नजर हमारी टिकने दो 
हमको क्या लेना-देना है 
सरहद के गलियारों से 
शोहरत बहुत कमा बैठे हम
कविता के  व्यापारों से 
कोई नही होता अब घायल
शब्दों के हथियारों से 
हमको क्या लेना-देना है 
इस जग के दुखियारों से 
सुंदर वसुधा हमें पुकारे  
अंत समय तक उसे निहारें 
शीतल वृक्षों की छाया में 
प्रेम गीत कुछ लिखने दो 
हमें जहाँ की कहाँ पड़ी है 
सत्य छुपे तो छुपने दो 
भूखे, नंगे बेकारों की 
विपदा किसे सुनानी है 
लक्ष्मीबाई, चेन्नम्मा सी 
कसम हमें  न खानी है 
भारी भरकम शब्दों से 
कविता हमें सजाने दो 
हमें जहाँ की कहाँ पड़ी है 
खुद पे जरा इतराने दो 
चीर हरण हो जब माता का 
तब कोई श्रृंगार लिखेंगे 
लुट जाएगी उसकी अस्मत 
उस पर व्यंग प्रहार लिखेंगे 
झुक जाये कर्तव्य की गर्दन 
झुकती है तो झुकने दो 
हमें जहाँ की कहाँ पड़ी है 
हम को मन की लिखने दो 
छंद ,ग़ज़ल, न कविता है 
न गीत का प्रयास है 
ये तो एक आहत कवी के 
मन से निकली भड़ास है 
पाप, अनीति जब जब बाढ़ी 
तब तब लड़ा साहित्य है 
कलमकार होने के नाते 
कुछ उत्तरदायित्व हैं 
झूठे सपने बहुत हो चुके 
सत्य का दर्पण दिखलाओ 
न्याय के रक्षण हेतु जागो 
अपना भी तो कदम बढ़ाओ 
धरती माता गर्व करे तुम पर 
ऐसा कुछ कर जाओ 
     
       - नीतू ठाकुर 

चित्र साभार - फाइन आर्ट अमेरिका (गूगल)

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब,ओजपूर्ण आक्रोशित अभिव्यक्ति आपकी।
    बहुत सुंदर👌👌

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  2. ललकारती हुई रचना, प्रासंगिक दी बहुत ही सुंदर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-04-2017) को "कहीं बहार तो कहीं चाँद" (चर्चा अंक-2946) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. मर्म,सत्यता, प्रेरणादायक रचना

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  5. मर्म,सत्यता, प्रेरणादायक रचना

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  6. सुन्दर प्रतिक्रिया....आभार

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  7. अद्भुत नीतू जी सच निशब्द हूं मै अंतर तक झकझोरती आपकी रचना कुछ पल सोचने को विवश करती है,निज अवलोकन के लिये,
    सच सारगर्भित दहाड़ है ये, साधुवाद सखी।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी
      हम आप की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे थे
      सुबह की भोर और रचना की गहराई
      आप की नजरों से देखने का अलग ही मजा है
      आप की प्रतिक्रिया हमेशा हौसला बढाती है

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  8. वाह निशब्द हूँ क्या कहूँ. इतनी ओजपूर्ण कविता की समीक्षा के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास. शुभकामनाएं

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    1. सुन्दर प्रतिक्रिया... बहुत बहुत धन्यवाद

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  9. Sach kahun to bahut chhoti hun app sab ke samne umr se nahi pr app sab ke sahityik gyan v apki lekhani ke age lekin itna jaroor kahungi ki....Ek urja ka vistar karti huyi rachna ...adbhut

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    उत्तर
    1. priy sakhi bahut bahut abhar aap ki sundar pratikriya ke liye. aap ko is blog pr dekhkar apar anand hua ...maine aap ki rachnaye padhi hai bahut accha likhti hai aap...kavita to ehsaason ki abhivyakti hai aur koi bhi ehsaas chota ya bada nahi hota....hum sub sikh rahe hai...likhte rahiye aur sneh banaye rakhiye

      हटाएं
  10. वाह बहुत ख़ूब नीतू जी आत्मा की आवाज निकल कर कविता के माध्यम से प्रेरित करने में सक्षम है

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    1. बहुत बहुत आभार।आशिर्वाद बनाये रखें।
      सुन्दर प्रतिक्रिया।

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  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  12. बहुत बहुत आभार।आशिर्वाद बनाये रखें।

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  13. ओजपूर्ण सृजन नीतू जी . समसामयिक घटनाओं से मर्माहत हृदय की वेदना को बहुत कुशल भावों मे अभिव्यक्त किया है आपने .

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    उत्तर
    1. रचना का मर्म समझने के लिए बहुत बहुत आभार। आशिर्वाद बनाये रखें।
      सुन्दर प्रतिक्रिया।

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  14. बहुत ही सुंदर सृजन प्रिय नीतू | ओजपूर्ण शैली में बींधने वाले आक्रांत कवि स्वर !!!!!!!!! सच कहा आपने ऐसे ही हो गये हम दूसरों के दुःख से अपरिचित और अपनी दुनिया में मस्त | कवि का गान निरर्थक सा हुआ जाता है | पर प्रखर कवि के जो गाया है उसे दुनिया ने सुना जरुर है | सस्नेह --

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार।
      आप की प्रतिक्रिया हमेशा ही हौसला बढाती है।
      यूँ ही आशीष बनाये रखें।

      हटाएं

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