सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

कहती है मुझसे मधुशाला...नीतू ठाकुर

कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर

इज्जत, शोहरत,सुख और शांति किस्तों में लुट जाती है 
मिट जाती है भाग्य की रेखा जब मुझसे टकराती है
पावन गंगा जल भी मुझमे मिलकर विष बन जाता है 
जो भी पीता है ये प्याला नशा उसे पी जाता है 
   
 कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर

मेरी सोहबत में ना जाने कितने घर बर्बाद हुए
छोड़ गए जो तनहा मुझको वो सारे आबाद हुए 
ऐसा दोष हूँ जीवन का जीवन को दोष बनाती हूँ 
प्रीत लगाता है जो मुझसे उसका चैन चुराती हूँ  

कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर

भूले भटके जग से हारे पास मेरे जब आते है 
मीठे जहर के छोटे प्याले उनका मन ललचाते है 
बाहेक गया जो इस मस्ती में उसका जीवन नाश हुआ 
समझ ना पाया वो खुद भी कैसे वो इसका दास हुआ 

कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर

गाढे मेहनत की ये कमाई ऐसे नहीं लुटाते है 
लड़ते है हालत से डटकर वही नाम कर जाते है 
बाहेक नहीं सकता तू ऐसे तू घर का रखवाला है 
एक तरफ है जीवन तेरा एक तरफ ये प्याला है 

कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर
                                  
                                -नीतू रजनीश ठाकुर 

शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

रो रहा आसमाँ ये जमीं देखकर.....नीतू ठाकुर


रो रहा आसमाँ ये जमीं देखकर,उसकी आँखों में बसती नमी देखकर,
इस कदर तेरे टुकडे किये क्या कहूं,शर्म आती है ये आदमी देखकर,

लूट कर तेरी कीमत लगाते है जो,खुद को दुनिया का मालिक बताते है जो,
खुद को इन्सान कहते है ये मतलबी,उनमे इंसानियत की कमी देखकर,

रो रहा आसमाँ ये जमीं देखकर,उसकी आँखों में बसती नमी देखकर,
इस कदर तेरे टुकडे किये क्या कहूं,शर्म आती है ये आदमी देखकर,

जिनको आंचल में तुमने छुपाया कभी,भूके तन को निवाला खिलाया कभी,
आज आरी से काटे वो दामन तेरा,जिनको सीने से तुमने लगाया कभी,

रो रहा आसमाँ ये जमीं देखकर,उसकी आँखों में बसती नमी देखकर,
इस कदर तेरे टुकडे किये क्या कहूं,शर्म आती है ये आदमी देखकर,

हर मुसीबत से जिनको बचाती है वो,जिनके बारूद सीने पे खाती है वो,
रक्त से भर रहे है वो गोदी तेरी,उनके गैरत की यूँ बेबसी देखकर,

रो रहा आसमाँ ये जमीं देखकर,उसकी आँखों में बसती नमी देखकर,
इस कदर तेरे टुकडे किये क्या कहूं,शर्म आती है ये आदमी देखकर,

कर्मयोगी,पतितपावनी ये धरा,जिसके मन में दया,प्रेम,करुणा भरा,  
कितनी सुंदर,सुशोभित ,सुसज्जित थी वो,आज अपनी ही नजरों में लज्जित थी वो,

रो रहा आसमाँ ये जमीं देखकर,उसकी आँखों में बसती नमी देखकर,
इस कदर तेरे टुकडे किये क्या कहूं,शर्म आती है ये आदमी देखकर,
                                           
                                            - नीतू रजनीश ठाकुर




     

सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो.....नीतू ठाकुर


मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?

चंद्र सी आभा मुख मंडल पर,जुल्फ घटा सी छाई है,
चन्द्रबदन,मृगनयनी हो तुम तन पर चिर तरुणाई है,
चाल चपल चंचला के जैसी ,स्वर में तेरे गहराई है,
तुमने मुझको जनम दिया है,या तू मेरी जाई है ?    

मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?  

कभी हंसाती,कभी रुलाती कभी रोष दर्शाती हो,
कौन हो तुम जो मन की बातें बस मुझको बतलाती हो ?
मेरी कविता,मेरी रचना तू मेरा संसार है,
तूने मेरा चयन किया है ये तेरा उपकार है,
  
मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?  

- नीतू ठाकुर 

आदियोगी - नीतू ठाकुर 'विदुषी'

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