मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?
चंद्र सी आभा मुख मंडल पर,जुल्फ घटा सी छाई है,
चन्द्रबदन,मृगनयनी हो तुम तन पर चिर तरुणाई है,
चाल चपल चंचला के जैसी ,स्वर में तेरे गहराई है,
तुमने मुझको जनम दिया है,या तू मेरी जाई है ?
मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?
कभी हंसाती,कभी रुलाती कभी रोष दर्शाती हो,
कौन हो तुम जो मन की बातें बस मुझको बतलाती हो ?
मेरी कविता,मेरी रचना तू मेरा संसार है,
तूने मेरा चयन किया है ये तेरा उपकार है,
मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?
- नीतू ठाकुर
वाह्ह्ह...बहुत सुंदर कविता नीतू जी।
जवाब देंहटाएंभावों को खूबसूरती से पिरोया है आपने
लयात्मक कविता में।बहुत अच्छा लिखती है आप।मेरी बधाई एवं शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
बहोत बहोत आभार, आप की प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह बढ़ाने वाली होती है
हटाएंअपनी रचना में खुद को महसूस करने की सुन्दर कल्पना। सुन्दर प्रस्तुति, साथ ही सादर आग्रह है कि मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों --
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in
नीतू जी एक अनुरोध है कि आप अपने ब्लॉग पर Followers(समर्थक) गैजेट जोड़ें।
जी जरूर, आप का बहोत बहोत आभार
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-10-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2769 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आप का बहोत बहोत आभार
हटाएंसुंदर ! कई अर्थ निकाले जा सकते हैं इस लयात्मक वार्तालाप के, मुझे लगता है कि यहाँ कवयित्री स्वयं अपनी ही रचना को संबोधित कर रही हैं । बहुत सुंदर शब्दों का प्रयोग ।
जवाब देंहटाएंआप का बहोत बहोत आभार
हटाएंबहुत बहुत बहुत सुंदर निःशब्द
जवाब देंहटाएंआप का बहोत बहोत आभार
हटाएंजय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 01/05/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आदरणीय मेरी रचना को मान देने हेतु बहुत बहुत आभार।
हटाएंआशिर्वाद बनाये रखें।
बहुत उम्दा आदरणीया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना