शनिवार, 7 मई 2022

भावों की गलियाँ - नीतू ठाकुर 'विदुषी'


 नवगीत

नीतू ठाकुर 'विदुषी'


मापनी - 16/14


लिखना बैठी छोड़ कलम जब

मौन साधना लीन हुई

भावों की गलियाँ तब बहकी 

दीन हुई फिर दीन हुई।।


शब्द अलंकृत बन साधारण 

विधवा जैसे दिखते हैं

ओढ़ आवरण बंध निराले

मौन मौन ही लिखते हैं

ठहरे जल पर काई झलकी 

मीन हुई फिर मीन हुई।।


धड़कन से स्पंदन छू मंतर

लय में लेना भूल हुई

बिखरे दर्पण आकृति बिखरी 

स्मृति से कविता धूल हुई

व्यथित हृदय की टीस सिसकती 

बीन हुई फिर बीन हुई।।


छंदों ने मुख मोड़ा दिखता 

भाग्य हँसे कुछ गीतों के 

द्रवित हुई कब बंजर धरणी 

नत बूंदों की रीतों के

पांच दिनों की रात गिनी जब

तीन हुई फिर तीन हुई।।


नीतू ठाकुर 'विदुषी'

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