बुधवार, 14 दिसंबर 2022

आदियोगी - नीतू ठाकुर 'विदुषी'


गुरुदेव की रचना 'आदि योगी' से प्रेरित एक गीत

 आदियोगी

मापनी - मुखडा ~ 21/21 मात्रा

अन्तरा - 14/14


शीत लहरों से घिरे इक हिम शिखर पर

साधना में लीन देखे आदियोगी

छोड़कर हर मोह इस नश्वर जगत का

भक्त के आधीन देखे आदियोगी


मरघटों की देहरी पर

वो प्रतीक्षारत निहारे

जन्म से ही प्राण अबतक 

चल रहे जिनके सहारे

कुंडली जब सर्पिणी बन नाचती है 

तब बने हैं बीन देखे आदि योगी


बंधनों में बांधकर जो

बंध सारे तोड़ते हैं

मूढ़ता का नाश करके

ज्ञान पथ पर मोड़ते हैं

अश्रुओं की धार लेकर लोचनों में

जो विवश वे दीन देखे आदि योगी


शक्ति करके दाह जाती 

चल पड़े उनकी चिता ले 

पीठ बावन सी झरी वो 

बोझ उर कैसे रिता ले

जल उठा उस यज्ञ में जब प्रेम पावन

जल बिना ज्यों मीन देखे आदियोगी


नीतू ठाकुर 'विदुषी'



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