मंत्र सदा गणतंत्र सिखाता
नित उच्चारण करना है
बीज हृदय कर रोपित समता
सबको धारण करना है।।
दृढ़ संकल्पित व्रत जीवन का
चलता जैसे सहगामी
स्वाभिमान का अर्थ सिखाता
भाल केसरी बहु धामी
स्वप्नपूर्तियाँ हर्षित होकर
कहती पारण करना है।।
संविधान की हर शाखा ने
बीज न्याय का बोया है
जैसे गंगा की धारा ने
पाप हॄदय का धोया है
जात पात की बेल विषैली
मिलकर मारण करना है।।
स्वर्णिम स्मृतियों की परछाई
झाँक रही है द्वारे से
शंखनाद गूँजेगा नभ तक
दिल्ली के गलियारे से
राम राज्य कर स्थापित जग में
एक उदाहरण करना है।।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'