जब तक मेरा दर्द बिकता रहा
मै अश्कों की स्याही से लिखता रहा
डर लगता था कहीं बेमोल न हो जाऊँ
इसलिए यादों की चक्की में पिसता रहा
जाता रहा दफ़न यादों के बेदर्द शहर में
जहाँ का हर पल मुझे चुभता रहा
छिपता रहा खुशियों से
कहीं हस्ती न मिट जाये
कहीं हस्ती न मिट जाये
दर्द के समंदर में बार बार डूबता रहा
तन्हाइयों में डूब करमिटाकर खुशियों को
अपने ही जख्मों को नोचता रहा
बेनूर जिस्म पथराई आँखे
दिल से लहू हर पल रिसता रहा
ऐसी सनक सवार थी ज़िंदगी मिट रही थी
मै ज़िंदगी से पल पल सीखता रहा
लोग वाह वाही करते रहे मेरे जख्मों पर
मेरा दिल अंदर से चीखता रहा
जब तक मेरा दर्द बिकता रहा
मै अश्कों की स्याही से लिखता रहा
- नीतू ठाकुर