शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

जब तक मेरा दर्द बिकता रहा... नीतू ठाकुर


जब तक मेरा दर्द बिकता रहा 
मै अश्कों की स्याही से लिखता रहा 
डर लगता था कहीं बेमोल न हो जाऊँ 
इसलिए यादों की चक्की में पिसता रहा 
जाता रहा दफ़न यादों के बेदर्द शहर में 
जहाँ का हर पल मुझे चुभता रहा 
छिपता रहा खुशियों से
कहीं हस्ती न मिट जाये
दर्द के समंदर में बार बार डूबता रहा 
तन्हाइयों में डूब करमिटाकर खुशियों को 
अपने ही जख्मों को नोचता रहा 
बेनूर जिस्म पथराई आँखे 
दिल से लहू हर पल रिसता रहा 
ऐसी सनक सवार थी ज़िंदगी मिट रही थी 
मै ज़िंदगी से पल पल सीखता  रहा 
लोग वाह वाही करते रहे मेरे जख्मों पर 
मेरा दिल अंदर से चीखता रहा 
जब तक मेरा दर्द बिकता रहा 
मै अश्कों की स्याही से लिखता रहा 

- नीतू ठाकुर 


गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

क्या पत्थर ही बन जाओगे ....नीतू ठाकुर

 सूखे पत्ते बंजर धरती 
क्या नजर नहीं आती तुमको 
ये बेजुबान भूखे प्यासे 
क्या खुश कर पायेंगे तुमको 
हे इंद्रदेव, हे वरुणदेव 
किस भोग विलास में खोये हो 
या किसी अप्सरा की गोदी में 
सर रखकर तुम सोये हो  
करते है स्तुति गान तेरा 
अब तो बादल बरसाओ ना 
तुम देव हो ये न भूलो तुम 
कुछ तो करतब दिखलाओ ना 
अंधे बनकर बैठे त्रिदेव 
विपदा को पल पल देख रहे 
अब कौन बचाने जायेगा 
मन ही मन में यह सोच रहे 
पत्थर की पूजा करते हैं 
क्या पत्थर ही बन जाओगे 
या कृपा करोगे दुनिया पर 
जलधारा भी बरसाओगे 
कर जोड़ करें तुमसे विनती 
अब और कहर बरसाओ ना 
तुम दया करो हम पर स्वामी 
बारिश बनकर फिर आओ ना 

            - नीतू ठाकुर 

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

तुम्हें मेरी याद आयेगी न ?...नीतू ठाकुर

सच कहो तुम्हें मेरी याद आयेगी न ?
मेरे साथ हर पल जिया है तूने 
तेरे गम और ख़ुशी का साक्षीदार हूँ मै 
आज आकर इस आखरी मक़ाम पर 
बहुत बेबस और लाचार हूँ मै 
मिटना ही मुकद्दर था चंद सांसे ही बची हैं 
और तेरे चेहरे पर अनजानी हंसी है 
देखता हूँ मौन खड़ा इन खुशियों के बाजार को 
भुला रहे हैं सब लोग मुझ जैसे बेकार को 
सब को इंतजार है आने वाले कल का 
किसको है ख्याल इस मिट रहे पल का 
मिट रहा हूँ पल पल किसी को गम नहीं 
तुम कहते हो वक़्त बेरहम है क्या  तुम बेरहम नहीं ? 
कितना कुछ पाया है मेरी सोहबत में तुमने 
सब कुछ भुला दिया तुमने एक दिन में 
देखते ही देख़ते काल में समा जाऊँगा 
बस एक तारीख बन कर रह जाऊँगा 
तुम्हारा इंतजार करूँगा तुम्हे बुलाऊँगा 
बस एक बार आवाज देना दौड़ा चला आऊँगा 
तुम्हें अपने साथ बीते कल में ले जाऊँगा 
दो पल के लिए ही सही तुमसे मिलकर मुस्कुराऊंगा 
सच कहो तुम्हें मेरी याद आयेगी न ?

           -  नीतू ठाकुर "नीत"



वो आखरी खत जो तुमने लिखा था......नीतू ठाकुर


वो आखरी खत जो तुमने लिखा था 
तेरे हर खत से कितना जुदा था 

मजबूरियों का वास्ता देकर मुकर जाना तेरा 
गुनहगार वो वक़्त था या खुदा था 

बड़ी मुश्किल से संभाला था खुद को 
वो पल भी मुश्किल बड़ा था 

शिकायत करते तो किस से करते 
जब अपना मुकद्दर ही जुदा था 

जल रहे थे ख्वाब मिट रहे थे अरमान 
तू लाचार और मेरा प्यार बेबस खड़ा था 

मेरा दिल ही जनता है क्या गुजरी थी 
जब आंसुओं में डूबा वो आखरी खत पढ़ा था 

               - नीतू ठाकुर 

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

इंग्लिश मौसी....नीतू ठाकुर

हे परमपूज्य इंग्लिश मौसी 
तुम विश्वमान्य, जगकल्याणी 
तेरे चरणों का दास बना 
इस युग का हर मानव प्राणी 
तुम बनी ज्ञान की परिभाषा 
हर अज्ञानी की अभिलाषा 
फिर क्यों तेरी कृपा से वंचित 
 रहा दास अब तक प्यासा 
मै कितना भी रट्टा मारूं 
तुम होती मुझको याद नही
हे श्रेष्ठ जनों की मम देवी 
क्यों सुनती तुम फरियाद नही 
कर जोड़ करूँ तुमसे विनती 
करना मुझ को बर्बाद नही
बिन तेरी छाया के मौसी 
होता कोई आबाद नही 
सच्ची निष्ठा मेरी तुझ पर 
मन से तुझको अपनाऊंगा 
अगर साध्य तुम्हें कर पाया तो 
यह जीवन सफल बनाऊंगा 

        - नीतू ठाकुर 



शनिवार, 16 दिसंबर 2017

पत्नी का मोबाइल प्रेम...नीतू ठाकुर


मै पहले जब घर आता था 
वो मंद मंद मुस्काती थी 
नाजुक सी अपनी हथेली से 
प्याली मुझको पकड़ाती थी 
कैसा था दिन प्रीतम बोलो 
कह कर कितना बतलाती थी 
 मीठी मीठी उन बातों से 
दुःख को मेरे हर जाती थी 
हर रात पंच पकवान बनें 
वो कितना मुझे खिलाती थी 
मुझ जैसे अदना इंसान को 
जैसे भगवान बनाती थी 
पर मोबाइल ने आँगन में 
अब ऐसी आग लगाई है 
की अपनी ही बीवी मुझको 
अब लगने लगी पराई है 
जब देखो तब मोबाइल पर 
वो घंटों बातें करती है 
कब आता हूँ कब जाता हूँ 
वो अनजानी सी रहती है 
जब भूक लगे तो वो मुझको 
अब रेस्टोरेंट ले जाती है 
और सेल्फी लेकर दुनिया को 
वो अपनी छवि दिखती है 
अब चाय पिलाना भूल गई 
मन एक एक पल को तरसा है 
इस कदर प्यार पत्नीजी का
अब मोबाइल पर बरसा है 
- नीतू ठाकुर  



गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

ऐसी मधुर मधुर...नीतू ठाकुर


ऐसी मधुर मधुर धुन छेड़ रहें हैं 
जमुना तट पर गिरधारी 
झूमे गोकुल नगरी सारी 
कान्हा ऐसी तान सुनाये 
सुध बुध सबकी हरता जाये 
झनक रही राधा की पायल 
पिया मिलन की प्यास जगाये 
ऐसी मधुर मधुर..........
बरस रहें हैं पुष्प गगन से 
जैसे कोई सेज सजाये 
पुष्प लता बन बैठी झूला 
प्रेम रंग में डूबी जाये 
पकडे कलाई आँचल खींचे 
गोपियन को बाहों में भींचे 
नटखट कान्हा तोरी नजरिया 
राधा खड़ी है अँखियाँ मींचे
 ऐसी मधुर मधुर..........
तोड़ के आज शर्म के पहरे 
कान्हा की बाहों में झूमे 
देख रही है एक टक राधा 
कान्हा के मस्तक को चूमे 
पवन दीवानी बहती जाये 
राधा के आँचल को उड़ाये 
शर्म से पानी पानी राधा 
आज श्याम में रही समाये 
ऐसी मधुर मधुर..........
झूम रहे है सब मस्ती में 
देवों के भी मन ललचाये 
कान्हा तेरी अद्भुत लीला 
जैसे स्वर्ग धरा पर आये 
खुशबू से महका वृन्दावन 
कान्हा जब जब रास रचाये 
देख के ऐसा दृश्य मनोरम 
समय चक्र भी थम सा जाये 
ऐसी मधुर मधुर..........

        - नीतू ठाकुर 

इस डायरी में मेरे हजारों ख्वाब है.... -नीतू ठाकुर

दिल के हर एहसास को 
पन्नों पर उतारा है 
शब्दोँ के मोती से 
उसको संवारा है 
इस डायरी में मेरे 
हजारों ख्वाब है
दिल में उठे हजारों 
सवालों के जवाब है 
कहीं गम के बादल हैं 
कहीं खुशियों की बरसात है 
कहीं उम्मीद का सूरज है 
कहीं मायूसी भरी रात है 
कहीं है जुदाई 
कहीं मुलाकात है 
किसी से न कह पाये 
वो अनकही बात है 
यादों के हर पल को 
इन पन्नों में छुपाया  है 
पढ़ कर उन लम्हों को 
ये दिल मुस्कुराया है 
           
-नीतू ठाकुर 

बुधवार, 13 दिसंबर 2017

वक़्त की दहलीज़ पर...नीतू ठाकुर


वक़्त की दहलीज़ पर
रोशनी  सी टिमटिमाई 
रात के अंधियारे वन में 
एक खिड़की दी दिखाई 
चल ख्वाबों के पंख लगाकर 
नील गगन में उड़ते जायें 
तारों से रोशन दुनिया में 
सपनों का एक महल बनायें 
जहाँ बहे खुशियों का सागर 
फूलों की खुशबू को समाये 
ठंडी ठंडी पुरवइया में
इंद्रधनुष झूला बन जाये 
चमक चमक के जुगनू देखो 
अंधियारे में राह दिखायें 
कोयलिया की तन पे तितली 
झूम उठी है पर फैलाये 
चमक रहा अंबर में चन्दा 
बुला रहा बाहें फैलाये 
मुक्त करो अब अपने मन को 
थमा वक़्त गुजर न जाये 

        - नीतू ठाकुर   


मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

कैसा तेरा प्रेम समर्पण ?....नीतू ठाकुर



सुंदर मुखड़ा चिकनी काया 
देख के तेरा मन भरमाया 
करने चले तुम सब कुछ अर्पण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण ?

शब्दों के तू जाल बिछाये 
झूठे सच्चे ख्वाब दिखाये 
दिखा रहे हो झूठा दर्पण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण ?

जैसे कोई जाल बिछाये 
उसमें पंछी फसता जाये 
दावत जैसा है आकर्षण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण ?

जिसके मन को तू न जाने 
गुण और दोष से हो अनजाने 
उसके लिए अपनों का तर्पण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण  ?

जिसका खुद पर नही नियंत्रण 
कौन सुने उसका आमंत्रण 
मन बुद्धि का है संघर्षण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण  ?

           - नीतू ठाकुर 

सोमवार, 11 दिसंबर 2017

बिखरी हुई है ज़िंदगी...नीतू ठाकुर


बिखरी हुई है ज़िंदगी 
टूटे हुए है सपने 
न है कोई सहारा 
और ना ही कोई अपने 
चारों तरफ अँधेरा 
गर्दिश में हैं सितारे 
धुंधला गये हों जैसे 
 दुनिया के सब नज़ारे 
न खोने का गम है 
न पाने की चाहत 
न तन को सकूँ है 
न मन को है राहत 
  ना  मै मरा हूँ और 
ना हूँ मै ज़िंदा 
तड़पता है जैसे 
कैद में परिंदा 
जाने किस उम्मीद में 
ये साँस चल रही है 
थोड़ा सा धैर्य रखने का 
दम भर रही है 
सजा बन गई है 
अब ज़िंदगी हमारी 
होने लगा है अब तो 
एक एक पल भारी 
    - नीतू ठाकुर 

रविवार, 10 दिसंबर 2017

मै तो तेरा अंश हूँ मैया...नीतू ठाकुर


मै तो तेरा अंश हूँ मैया
कर मुझको स्वीकार
मुझे दे जीने का अधिकार

न जाने कब क्या हो जाये
सोच के मेरा मन घबराये
तुझसे मै कुछ कह ना  पाऊँ
पर तुझको कैसे समझाऊँ

मै तो तेरा अंश हूँ मैया.....

भूल हुई क्या मै  ना  जानूं 
मै तो बस तुझको पहचानूं 
तेरी गोद में सोना चाहूँ 
तुझसे लिपटकर रोना चाहूँ 

मै तो तेरा अंश हूँ मैया..... 

चाहे मुझसे प्यार न करना 
चाहे लाड दुलार न करना 
पर दुनिया जब तुझसे बोले 
मौत मेरी स्वीकार न करना 

मै तो तेरा अंश हूँ मैया..... 

 क्यों डरती हो तुम दुनिया से 
मै  किसका क्या ले जाऊँगी 
हाथ बटाऊँगी मै तेरा 
नाम तेरा मै कर जाऊँगी 

मै तो तेरा अंश हूँ मैया..... 

दुनिया बन बैठी है दुश्मन 
लेकिन तुझको लड़ना होगा 
मेरी नन्ही जान की खातिर 
थोड़ा दर्द तो सहना  होगा 

मै तो तेरा अंश हूँ मैया..... 


-नीतू ठाकुर 








शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

ज़िंदगी-मौत......नीतू ठाकुर


मौत से पूछा जो हमने
देर कर दी आते आते
मौत अचरज से निहारे
देख मुझको मुस्कुराते
ज़िंदगी ने इस कदर
लूटी हमारी ज़िंदगी
अब तो दिल करता है हर पल
मौत की ही बंदगी
ज़िंदगी तो ख्वाब है
एक दिन मिट जाएगी
मौत है असली हकीकत
एक दिन टकराएगी
मौत से बढ़कर कोई भी
चाहने वाला नहीं
मिल गई एक बार तो फिर
छोड़कर न जाएगी
ज़िंदगी से खूबसूरत
मौत की हर एक अदा
देख ले एक बार जो 
हो पाए न फिर वो जुदा
मुद्दतों के बाद उतरा
आँख से पर्दा मेरे
ज़िंदगी के ख्वाब टूटे
ख्वाब है अब बस तेरे
मुस्कुराई मौत बोली
चाँद सा चेहरा खिला
 खुश नसीबी है मेरी 
जो चाहने वाला मिला 
मेरी खातिर इतनी चाहत 
ज़िंदगी से यूँ  गिला 
ख़त्म कर अब ज़िंदगी का 
जानलेवा सिलसिला 
ज़िंदगी झूठी है जितनी 
उतनी ही मगरूर है 
चल नई दुनिया में जो 
हर रंज-ओ -गम से दूर है 

    - नीतू ठाकुर 




आदियोगी - नीतू ठाकुर 'विदुषी'

गुरुदेव की रचना 'आदि योगी' से प्रेरित एक गीत  आदियोगी मापनी - मुखडा ~ 21/21 मात्रा अन्तरा - 14/14 शीत लहरों से घिरे इक हिम शिखर पर स...