नवगीत
आँसू
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मापनी 16/16
घाव हँसे खुशियों के आँसूं
एक और की चाहत कहकर।।
प्रीत हृदय में मौन खड़ी थी
भाव पड़े अंतस के ढह कर
1
विरह गीत लिख रही लेखनी
आज डूब कर स्याही में
छोड़ सिसकता भूल गया जो
नेह खोजती राही में
बंद द्वार पाषाणी हिय में
मुक्त हुए कुछ दिन ही रहकर
2
बिखरे रिश्तों की तुरपन कर
शूल बनी चुभती हर याद
किसे छलोगे प्रेम जाल रच
बचा शेष क्या मेरे बाद
मनमंथन में विष प्राशन कर
साँस हँसी पीड़ा को सहकर
3
सपने आँखों से ओझल हो
पोछ रहे नैनों का कजरा
खनक भूलकर टूटी चूड़ी
पायल रूठी बिखरा गजरा
बिन श्रृंगार बनी जब जोगन
क्या करती पीड़ा में दहकर
नीतू ठाकुर 'विदुषी'