नवगीत
श्वासों की वीणा
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मापनी~ 16/14
टूटी श्वासों की वीणा ने
सरगम को ऐसे गाया।
झंकृत हिय स्पंदन सा करती
हिरदे गहरा तम छाया।।
1
शरद पूर्णिमा जैसी रातें
देखी अमृत बरसाते
अमर हो गया प्रेम पुष्प पर
देखा जीवित हिय खाते
देकर पाषाणों सी ठोकर
प्रेम कहाँ पर ले आया।।
2
मिश्री सी बातें विष बन कर
अंतस में घुलती जाए
मृग तृष्णा से जाल बिछाकर
जीवन को छलती जाए
वही हॄदय को छोल रहा है
कभी जो मेरे मन भाया।।
3
संग रहा परछाई बन जो
आज वही मुख मोड़ रहा
सूख गई सुख की जलधारा
दुख के बादल ओढ़ रहा
प्रीत रीत को बिसरा कर के
स्तूप विचारों का ढाया।।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
वाह!
जवाब देंहटाएं