गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

एक छंद मेरे नाम है .. विदुषी


 

एक छंद मेरे नाम है

संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा निर्मित 

'विदुषी छंद

विदुषी छंद का शिल्प विधान ■ 

वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।

मापनी ~

221 222

212 212  22

तगण मगण

रगण रगण गुरु गुरु (गा गा)

उदाहरण -

जटायु जी को समर्पित एक छंद देखें .......

आकाश का गामी
भू पखेरू पड़ा देखा।
संताप से रोता
राम के नेह का लेखा।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

छंदों के महासागर में एक छंद अपने नाम होने का मूल्य एक छंदकार ही समझ सकता है। आज से वर्षों पहले आत्मसुखाय लेखन करती लेखनी छंद की परिभाषा से भी अनभिज्ञ थी। स्वर रहित हाइकु लोक में विचरण करते मन ने यह कभी नही सोचा था कि कलम कभी मापनी की पटरी पर दौड़ लगाएगी और गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी जैसे छंद मर्मज्ञ के सानिध्य में न केवल छंदों पर सृजन होगा अपितु एक छंद भी मेरे नाम होगा।

हनुमान जयंती के पावन अवसर पर गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी ने 106 नूतन छंदों का निर्माण किया और और उनका नामकरण कलम की सुगंध परिवार के उन कलमकारों के नाम किया गया जिन्होंने गुरुदेव से आशीर्वाद स्वरूप उपनाम लिए थे। पूरे परिवार के लिए यह अविस्मरणीय क्षण किसी पर्व से कम नही था। कल्पना से परे इस यथार्थ ने एक अद्भुत हर्ष की अनुभूति की जिसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। "विदुषी छंद" यह ऐसा बहुमूल्य उपहार है जो आजीवन मेरे साथ रहेगा और मैं पूर्ण प्रयास करूँगी की गुरुदेव की इस धरोहर को न केवल सुरक्षित रखूं बल्कि उसकी सुगंध को हर ओर फैलाऊँ।

ईश्वर की असीम अनुकम्पा ही थी जो आदरणीया पम्मी सिंह जी के माध्यम से मैं कलम की सुगंध परिवार से जुड़ी।  इस मंच ने मेरी लेखनी को एक नई दिशा दी सखी कुसुम जी, यथार्थ जी, गीतांजलि जी, अनिता जी, अनुराधा जी, अभिलाषा जी, आरती जी, पूनम जी, सरोज जी, अमिता जी, दीपिका जी, सरला जी, मीता जी, इन्द्राणी जी, धनेश्वरी जी, श्वेता जी, अनुपमा जी, कंचन जी, मीना जी, मंजुला जी इन सभी के साथ ने हर कठिन विषय को सरल कर दिया। हँसते खेलते छंद मुक्त लेखनी कब छंदबद्ध हो गई समझ ही नही आया। आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ जी, परमजीत सिंह कोविद जी, कन्हैया लाल श्रीवास आस जी, अनंत पुरोहित अनंत जी, सौरभ प्रभात जी, कौशल शुक्ला जी, गणेश थपलियाल जी इनके लेखन ने सदैव लेखनी को प्रेरित किया।

गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी का आभार व्यक्त करने के लिए शब्दकोश छोटा पड़ जाता है हमारा। उनकी असीम अनुकम्पा से मेरी मृत पड़ी लेखनी पुनर्जीवित हो उठी। उनके अथक प्रयास का परिणाम है मेरा लिखा हर शब्द.....पूर्व जन्मों का पुण्य ही होगा जो इस कलयुग में इतने श्रेष्ठ और ज्ञानी साहित्य के साधक की छत्रछाया प्राप्त हुई। उनका स्नेहाशीष सदैव मिलता रहे यही प्रार्थना ईश्वर से प्रतिदिन करती हूँ। हम इस योग्य नही की गुरु को गुरुदक्षिणा दे सकें पर उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान को अपनी कलम में उतारने का प्रयास अवश्य कर सकते हैं। उनके निर्मित छंदों को हम अपने भावों का रस पिलाकर वटवृक्ष बना सके तो यह हमारे जीवन की सार्थकता होगी। आपनी साधना का फल उन्होंने हम नवांकुरों को सौंपा है यह उनकी उदारता का प्रतीक है।

विदुषी छंद शतक शीघ्र ही गुरुदेव को समर्पित कर सकूँ इस लिए प्रयास रत हूँ और आप सभी से यही निवेदन है कि आप सब भी अवश्य प्रयास करें 🙏

नीतू ठाकुर 'विदुषी'




शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

विज्ञात आपके गीतों ने ...नीतू ठाकुर 'विदुषी'


 गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की निरंतर साहित्य साधना और उत्कृष्ट सृजन को समर्पित मेरे शब्द सुमन ....मैं इस योग्य तो नही की शब्दों में उन्हें समाहित कर पाऊं पर एक प्रयास🙏

विज्ञात आपके गीतों ने 

मात्रिक मापनी ~ मुखडा 16/14 अन्तरा 16/16


वर्तमान के फूहड़पन की 

मर्यादा को बाँध लिया

विज्ञात आपके गीतों ने 

एक साहसिक काम किया।।


अलंकार बिन बनी अभागन

मुखपोथी पर नाचे कविता

करे कलंकित काव्य शास्त्र जो

खतरे में कविता की भविता

ऐसे में नव शिल्प गढ़ा वो

भावों के जो नाम दिया।।


छंद अनाथ हुए से दिखते

गिनते थे अंतिम साँसों को

पीपल नीम नीर को तरसे

लोग पूजते थे बाँसों को

बंदीगृह से मुक्त कराकर

नव छंदों से घाव सिया


स्वार्थ रहित साहित्य साधना

नवांकुरों को यूँ उपजाया

भाषाओं की खिचड़ी त्यागी

दमकी फिर हिन्दी की काया

शीश झुके श्रम देख निरंतर

भाव बाँधता नित्य हिया


नवरस छलक रहे वर्णों से

शब्दों के जब अर्थ महकते

मौन त्याग कर खिली लेखनी

उगले अब अंगार दहकते

लेखन का उद्देश्य समर्पण

हर्ष बाँट जो गरल पिया


नीतू ठाकुर 'विदुषी'




शनिवार, 3 अप्रैल 2021

दुल्हन बनी तितली...नीतू ठाकुर 'विदुषी'

 

मापनी -11/14


आँगन हँसा अपना

सजी दीवार मुस्काई

दुल्हन बनी तितली

नई खुशियाँ कई लाई


हल्दी सजी तन पर

महावर पाँव को चूमे

ढोलक कमर कसती

अटारी द्वार भी झूमे

परदेस की चिट्ठी

हमारे गाँव में आई


चूड़ी खनकती है

इशारों में करे बातें

आँखों सजा कजरा

जगाती संग में रातें

मिश्री घुली बोली

घटा बन प्रीत की छाई


इठला रही बाती

लिपट कर दीप से बोली

ये ज़िन्दगी मेरी

तुम्हारे नाम की हो ली

गाने लगी चौखट

सुहानी भोर हर्षाई


नीतू ठाकुर 'विदुषी'

आदियोगी - नीतू ठाकुर 'विदुषी'

गुरुदेव की रचना 'आदि योगी' से प्रेरित एक गीत  आदियोगी मापनी - मुखडा ~ 21/21 मात्रा अन्तरा - 14/14 शीत लहरों से घिरे इक हिम शिखर पर स...