विज्ञात आपके गीतों ने
मात्रिक मापनी ~ मुखडा 16/14 अन्तरा 16/16
वर्तमान के फूहड़पन की
मर्यादा को बाँध लिया
विज्ञात आपके गीतों ने
एक साहसिक काम किया।।
अलंकार बिन बनी अभागन
मुखपोथी पर नाचे कविता
करे कलंकित काव्य शास्त्र जो
खतरे में कविता की भविता
ऐसे में नव शिल्प गढ़ा वो
भावों के जो नाम दिया।।
छंद अनाथ हुए से दिखते
गिनते थे अंतिम साँसों को
पीपल नीम नीर को तरसे
लोग पूजते थे बाँसों को
बंदीगृह से मुक्त कराकर
नव छंदों से घाव सिया
स्वार्थ रहित साहित्य साधना
नवांकुरों को यूँ उपजाया
भाषाओं की खिचड़ी त्यागी
दमकी फिर हिन्दी की काया
शीश झुके श्रम देख निरंतर
भाव बाँधता नित्य हिया
नवरस छलक रहे वर्णों से
शब्दों के जब अर्थ महकते
मौन त्याग कर खिली लेखनी
उगले अब अंगार दहकते
लेखन का उद्देश्य समर्पण
हर्ष बाँट जो गरल पिया
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
अद्भुत लेखन नमन आपकी लेखनी को
जवाब देंहटाएंआश्चर्य जनक सृजन 👌👌👌 आपकी योग्यता आपकी की लेखनी स्वयं प्रमाणित करती है। बहुत ही सुंदर लिखा है।
सादर धन्यवाद आदरणीय 🙏
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