अंत ही आरंभ है,प्रारंभ करता नवसृजन
उद्देश्य की पूर्ति करे, उम्मीद का पुनः जन्म
शाश्वत ये सत्य विराठ है, उम्मीद मन सम्राट है
आरंभ से पहले है वो , वो अंत के भी बाद है
सृष्टि का सृजन हुआ जिस पल
जीवन का कोई अर्थ न था
क़ुदरत की अद्भुत रचना का
उद्देश्य कभी भी व्यर्थ न था
उम्मीद का सूरज जब निकला
जीवन को एक आकार मिला
ईश्वर के रूप में मानव को
क़ुदरत का एक उपहार मिला
क़ुदरत की अद्भुत लीला को
इस जग में किसने जाना है
सच झूठ तर्क हैं एक तरफ
जीवन को मिला बहाना है
व्याकुल मन की अभिलाषा है
ज्ञानी की भी जिज्ञासा है
अंतर मन से जो उपजी है
एक अद्भुत मौन की भाषा है
जिस मन में कोई आस नहीं
जीवन रस की भी प्यास नहीं
भूले, भटके, जग के के हारे
हर मानव मन की आशा है
माना की एक छलावा है
एक झूठा भरम, दिखावा है
पर सत्य से बढ़कर सत्य है वो
जिसने सृष्टि को बचाया है
मिटती है बारम्बार मगर
हर रोज जन्म ये लेती है
उद्देश्य हीन हर जीवन को
उद्देश्य नया ये देती है
उम्मीद का कोई अंत नहीं
संसार भले ही मिट जाये
नामुमकिन है की सृष्टि से
उम्मीद कभी भी हट जाये
- नीतू ठाकुर
लाजवाब नीतू जी सांगोपांग रचना।
जवाब देंहटाएंसराहना की अभिव्यक्ति से परे शानदार बस बेमिसाल ।
बहुत बहुत आभार सखी
हटाएंसब आप की सोहबत का असर है
आप की प्रतिक्रिया और अच्छा लिखने की प्रेरणा देती है
सच, उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है। बहुत अच्छा लिखा आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआप की प्रतिक्रिया देखकर मन प्रसन्नता से भर गया
उम्मीद का कोई अंत नही। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह!!नीतू जी ...बहुत सुंदर ..उम्मीद का कोई अंत नही .....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-03-2017) को "नवसम्वतसर, मन में चाह जगाता है" (चर्चा अंक-2913) नव सम्वतसर की हार्दिक शुभकामनाएँ पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जीवन जीने के लिए उम्मीद बहुत ही जरूरी है। बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/03/61.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह्ह्ह्
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
आदरणीय बहुत बहुत आभार
हटाएंआदरणीय बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंउम्मीद का कोई अन्त नहीं.....
बेहतरीन.... शानदार.... लाजवाब...
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुन्दर प्रतिक्रिया
उम्मीद का होना ज़रूरी है ...
जवाब देंहटाएंये सांसें भी तभी तक हैं जब तक उम्मीद है ... अंत के बाद सृजन जैसे ...
सुंदर रचना है ...
बहुत बहुत आभार
हटाएंकविता का मर्म बहुत अच्छे से समझझा आपने
प्रिय नीतू जी,बहुत सुन्दर रचना!!!!
जवाब देंहटाएंस्नेह ।
बहुत बहुत आभार
हटाएंउद्देश्य हीन जीवन को नया उद्देश्य ये देती है
जवाब देंहटाएंउम्मीद मन सम्राट है सच में नीतू जी उम्मीद ही थके -हरे को आगे बड्ने को प्रेरित करती है