अपने मकान जैसा कोई मकाँ नही
निकले थे हम जहाँ से फिर आ गये वहीँ
टूटे से झोपड़े में कितना मिला सकूँ
छोटा है तो हुआ क्या अपना तो है सही
पूरे न होंगे अरमां हमको भी है खबर
फिर भी हमारे दिल में सपना तो है सही
काटा है जिंदगी को बड़ी मुफलिसी में पर
उम्मीद है ये दौर भी बदलेगा तो सही
बड़ी जिल्लतें मिली है हमको जहाँ से लेकिन
एक दिन तो बनके काटा चुभना तो है सही
भटकूं तेरी तलाश में कब तक मै दरबदर
मेरे भी इंतजार में होगा कोई कहीं
गुजरा है एक अरसा बिछड़े हुए मगर
फिर भी तुम्हारी आरजू कायम वही रही
भटकूं तेरी तलाश में कब तक मै दरबदर
मेरे भी इंतजार में होगा कोई कहीं
गुजरा है एक अरसा बिछड़े हुए मगर
फिर भी तुम्हारी आरजू कायम वही रही
- नीतू ठाकुर
काटा है जिन्दगी को बड़ी मुफलिसी में पर
जवाब देंहटाएंउम्मीद है ये दौर भी बदलेगा...
वाह. अति सुंदर
कोटि कोटि धन्यवाद
हटाएंकोई तो होता है किसी की इंतज़ार में ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब लिखा है ...
प्रिय नीतू जी बहुत ही प्यारी रचना लिखी है
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने अपने मकान जैसा कोई मकां नही
बहुत बहुत आभार
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-03-2018) को ) पीने का पानी बचाओ" (चर्चा अंक-2916) (चर्चा अंक-2914) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत बढिया नीतू जी..
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर नीतू जी।
जवाब देंहटाएंछोटा है तो हुआ अपना तो है सही... कितनी सत्य और वजनदार बात।
ईटा का हो या गारा का अपना घर अपना होता।
एक भजन की एक पंक्ति याद आ गई
गोपी कृष्ण भगवान को कहती है..
महल मालिया थारे
थारी बराबरी मै करां जी कोई फूस टापरा म्हारे।
शुभ रात्री।
बहुत बहुत आभार सखी।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रतिक्रिया
वाह बहुत सुन्दर नीतू जी।
जवाब देंहटाएंछोटा है तो हुआ अपना तो है सही... कितनी सत्य और वजनदार बात।
ईटा का हो या गारा का अपना घर अपना होता।
एक भजन की एक पंक्ति याद आ गई
गोपी कृष्ण भगवान को कहती है..
महल मालिया थारे
थारी बराबरी मै करां जी कोई फूस टापरा म्हारे।
शुभ रात्री।
बहुत बहुत आभार सखी।
हटाएंबहुत सुन्दर और सच्ची बात नीतू जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुन्दर लिखा है नीतू जी .
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