तन्हाईयों में अक्सर तेरा ख्याल आया
गुजरे हुए लम्हों ने कितना हमें रुलाया
किस्मत में थी तन्हाई मंजूर कर लिया
तेरे लिए जहाँ से खुद को दूर कर लिया
अपनों से जीतने का टूटा मेरा भरम
बनने लगी हैं गम पर तन्हाईयाँ मरहम
नादान दिल को इतना मगरूर कर लिया
खुशियों से दूर रहने को मजबूर कर लिया
जिस झील के किनारे सपने बुने थे हमने
उस झील को ही अपना साथी बनाया गम ने
कुछ तोहमतों ने घायल जरूर कर लिया
अरमानों को इस दिल ने चकनाचूर कर लिया
कहता है ये जमाना झूठी है ये मोहब्बत
इस मतलबी जहाँ में जिसकी नही जरूरत
तुमसे वफा का दिल ने कसूर कर लिया
इस ज़िंदगी को हमने नासूर कर लिया
- नीतू ठाकुर