बुधवार, 28 मार्च 2018

तन्हाईयों में अक्सर.....नीतू ठाकुर


तन्हाईयों में अक्सर तेरा ख्याल आया 
गुजरे हुए लम्हों ने कितना हमें रुलाया 
किस्मत में थी तन्हाई मंजूर कर लिया 
तेरे लिए जहाँ से खुद को दूर कर लिया 

अपनों से जीतने का टूटा मेरा भरम 
बनने लगी हैं गम पर तन्हाईयाँ मरहम 
नादान दिल को इतना मगरूर कर लिया 
खुशियों से दूर रहने को मजबूर कर लिया 

जिस झील के किनारे सपने बुने थे हमने 
उस झील को ही अपना साथी बनाया गम ने 
कुछ तोहमतों ने  घायल जरूर कर लिया 
अरमानों को इस दिल ने चकनाचूर कर लिया  

कहता है ये जमाना झूठी है ये मोहब्बत 
इस मतलबी जहाँ में जिसकी नही जरूरत 
तुमसे वफा का दिल ने कसूर कर लिया 
इस ज़िंदगी को हमने नासूर कर लिया 

- नीतू ठाकुर 

शनिवार, 24 मार्च 2018

एहसास कभी शब्दों का मोहताज नहीं होता ....नीतू ठाकुर


एहसास कभी शब्दों का मोहताज नहीं होता 
ये दुनिया कायम नहीं होती अगर एहसास नहीं होता 

एहसास बना एक गूढ़ प्रश्न कितना उसको सुलझाएं 
हर पल होता मौजूद मगर वो कभी नजर न आये 

एहसासों का भंवर जाल ऐसे मन को उलझाए 
हम  लाख निकलना चाहें पर हम कभी निकल न पाएं  

एहसास नही बंधता न भाषा न धर्म से 
बनते बिगड़ते रिश्ते अपने अपने कर्म से 

एहसास बयां कर पाएं वो शब्द कहाँ से लाऊँ    
काश  मौन अंतर मन को मै कभी जुबाँ दे पाऊँ   

                  - नीतू  ठाकुर






सोमवार, 19 मार्च 2018

फिर आ गये वहीँ ..... नीतू ठाकुर



अपने मकान जैसा कोई मकाँ नही 
निकले थे हम जहाँ से फिर आ गये वहीँ 

टूटे से झोपड़े में कितना मिला सकूँ 
छोटा है तो हुआ क्या अपना तो है सही 

पूरे न होंगे अरमां हमको भी है खबर 
फिर भी हमारे दिल में सपना तो है सही 

काटा है जिंदगी को बड़ी मुफलिसी में पर 
उम्मीद है ये दौर भी  बदलेगा तो सही 

बड़ी जिल्लतें मिली है हमको जहाँ से लेकिन 
एक दिन तो बनके काटा चुभना तो है सही

भटकूं तेरी तलाश में कब तक मै दरबदर
मेरे भी इंतजार में होगा कोई कहीं

गुजरा है एक अरसा बिछड़े हुए मगर
फिर भी तुम्हारी आरजू कायम वही रही


                     - नीतू ठाकुर  

शुक्रवार, 16 मार्च 2018

उम्मीद मन सम्राट है....नीतू ठाकुर



अंत ही आरंभ है,प्रारंभ करता नवसृजन 
उद्देश्य की पूर्ति करे, उम्मीद का पुनः जन्म 
शाश्वत ये सत्य विराठ है, उम्मीद मन सम्राट है 
आरंभ से पहले है वो , वो अंत के भी बाद है 

सृष्टि का सृजन हुआ जिस पल 
जीवन का कोई अर्थ न था 
क़ुदरत की अद्भुत  रचना का 
उद्देश्य कभी भी व्यर्थ न था 
उम्मीद का सूरज जब निकला 
जीवन को एक आकार मिला 
ईश्वर के रूप में मानव को 
क़ुदरत का एक उपहार मिला 

क़ुदरत की अद्भुत लीला को
इस जग में किसने जाना है 
सच झूठ तर्क हैं एक तरफ 
जीवन को मिला बहाना है 
व्याकुल मन की अभिलाषा है 
ज्ञानी की भी जिज्ञासा है 
अंतर मन से जो उपजी है 
एक अद्भुत मौन की भाषा है 

जिस मन में कोई आस नहीं 
जीवन रस की भी प्यास नहीं 
भूले, भटके, जग के के हारे 
हर मानव मन की आशा है 
माना की एक छलावा है 
एक झूठा भरम, दिखावा है 
पर सत्य से बढ़कर सत्य है वो 
जिसने सृष्टि को बचाया है 

मिटती है बारम्बार मगर 
हर रोज जन्म ये लेती है 
उद्देश्य हीन हर जीवन को 
उद्देश्य नया ये देती है 
उम्मीद का कोई अंत नहीं 
संसार भले ही मिट जाये 
नामुमकिन है की सृष्टि से 
उम्मीद कभी भी हट जाये 

           - नीतू ठाकुर       

सोमवार, 12 मार्च 2018

आखरी वो सिसकियाँ.....नीतू ठाकुर



रेशमी चादर में लिपटी 
आखरी वो सिसकियाँ 
सूखते अश्कों से जाने 
कितना कुछ कहती रही 
एक कोना ना मिला 
छुपने को उसको मौत से 
आज परछाई से भी 
डरती रही छुपती रही 
याद करती परिजनों को 
वेदना से भर रही 
बीते लम्हों की चिता 
जलती रही बुझती रही 
जिंदगी के पृष्ठ पलटे जा रहा 
व्याकुल ये मन 
आखरी लम्हों में सारी 
जिंदगी भरती रही 
यादों के झोके उसे छूकर गए 
कुछ इस कदर 
भूल कर सारी व्यथा 
हसती रही रोती रही 
दर्द की है इंतहा 
ये आखरी तन्हा सफर 
जिंदगी की डोर जिसमें 
हर घडी कटती रही   
छोड़ कर जाना है सबको 
कैसे हो मंजूर उसको 
आखरी सांसों तलक 
वो मौत से लड़ती रही 
      
      - नीतू ठाकुर   




गुरुवार, 8 मार्च 2018

करती निरंतर परिक्रमा ...नीतू ठाकुर



करती निरंतर परिक्रमा
क्यों ये धरा अभिशप्त है
किस आस में अविरल चले
जब की वो मन से विरक्त है
किस खंत में जलती है वो
उसका ह्रदय संतप्त है
ज्वालामुखी सी जल रही
किस भाव में आसक्त है
कोमल ह्रदय पाषाण बन
लावे में बहता रक्त है
खामोश है हर पल मगर
मुख क्यों तेरा अनुरक्त है
ब्रम्हांड की शोभा है वो
तन से भले संक्षिप्त है
अनभिज्ञ है क्या स्वयम से
शाश्वत है वो अलिप्त है
अगणित जीवों की जन्मदात्री 
ममता से क्यों अतृप्त है
अनुराग से वंचित सदा
सभी बंधनों से मुक्त है 

         - नीतू ठाकुर


शब्दों के प्रेम समर्पण से... नीतू ठाकुर 'विदुषी'

 मैं बांध सका हूँ कब हिय को, उस मोहपाश आकर्षण से। अभिव्यक्त भाव हो जातें है, शब्दों के प्रेम समर्पण से।। कल्पित से मेरे जीवन मे, प्रतिपल तेर...