हिंदी साहित्य जगत में पानीपत हरियाणा के साहित्यकार संजय कौशिक 'विज्ञात' जी का नाम किसी परिचय का आश्रित नही। कलम की सुगंध मिशन के संस्थापक विज्ञात जी छंद विधा पर मजबूत पकड़ रखते हैं और अनेक वर्षों से हिंदी साहित्य की निःस्वार्थ सेवा कर रहे हैं। प्रचार माध्यमों का सदुपयोग कर अनेक नवांकुरों को उन्होंने छंद विधा लिखना सिखाया। सवा सौ से अधिक छंदों का निर्माण इस बात को प्रमाणित करता है कि उनकी साहित्य साधना हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय योगदान दे रही है। कलम की सुगंध के अनेक मंच झरखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान,उत्तराखंड,हरियाणा सहित अनेक राज्यों में हिंदी साहित्य के साधकों के लिए अनेक प्रतियोगिताएँ और कव्यपाठ के कर्यक्रम आयोजित करते रहते है। झारखण्ड कलम की सुगंध के स्थापना दिवस के अवसर पर साथियों को प्रोत्साहित करने के लिए "झाँकती हिय आँगन कविता" साझा संग्रह विज्ञात प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित किया गया। अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिंदी के साथ-साथ छंद विधा का बढ़ता प्रचार निश्चित ही लेखन में नवक्रांति का सूचक है।विज्ञात जी द्वारा लिखे गए संग्रह धीरे धीरे पाठकों पे अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं जिनमें विज्ञात के दोहे, विज्ञात की कुण्डलियाँ, विज्ञात के गीत, व्यंजना नवगीत ओढ़े का समावेश है। उनका नव प्रकाशित संग्रह 'छंद वर्ण के आँगन गूँजें पाठक वर्ग द्वारा विशेष रूप से पसंद किया गया जिसमें मात्रा भार, अलंकार, रस और छंदों के विषय में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। संग्रह में उनके द्वारा लिखे गए विशुद्ध हिंदी के उदाहरण आकर्षण का केंद्र हैं।
नवगीत, हाइकु, कुण्डलियाँ इन विधाओं में गुरुदेव विज्ञात जी का योगदान बहुमूल्य है। माहिया जैसी उभरती विधा हो या कह मुकरी जैसी लुप्त होती विधा गुरुदेव विज्ञात जी ने अपने मार्गदर्शन से उनमें कुछ नवीनता लाने का सफल प्रयास किया है। रस और अलंकार पर आयोजित होने वाली कार्यशालाओं से सैकड़ों रचनाकार लाभान्वित हुए हैं। अनेक विदेशी कलमकार भी कलम की सुगंध मंच के साथ जुड़कर छंद विधा सीखने का प्रयास कर रहे हैं। अपने पिता और गुरु परमपूज्य रमेशचन्द्र कौशिक जी द्वारा प्राप्त ज्ञान उन्होंने स्वयं तक सीमित न रख कर उसकी सुगंध समूचे विश्व में फैलाने का कार्य कर रहे हैं। उनका यह प्रयास अनेक छंद मर्मज्ञों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। हरियाणा के बेरी गांव में उपजा यह ज्ञान का बीज आज विशाल वटवृक्ष का रूप धारण कर रहा है। संजय कौशिक 'विज्ञात' जी के इस सराहनीय प्रयास को शत शत नमन।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
रायगड़, महाराष्ट्र
बहुत ही सुन्दर और शानदार लेख 🙏🏻💐👌👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय 🙏
हटाएंआदरणीय गुरुदेव के साहित्य समर्पित जीवन पर पूरा लिख दिया जाए काफी कठिन है ,वे गुदड़ी के लाल हैं हर दिन उनकी एक नई प्रतिभा सामने आ मुखरित होती हैं, हम उसे समझ पाएं उससे पहले वे एक नया अध्याय लिख चुके होते हैं।
जवाब देंहटाएंअद्भुत क्षमता, असीम धैर्य, अभिराम सृजन,नित नये अन्वेषण।
नमन है उनकी लेखनी और साहित्य समर्पित जीवन को ।
नीतू जी आपका लेख सुंदर विस्तृत विवेचना युक्त , गुरुदेव की छवि अनुरूप सार्थक है ।
साधुवाद सह बधाई।
मनभावन प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार प्रज्ञा जी
हटाएंप्रेरक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कविता जी 🙏
हटाएंआदरणीय गुरुदेव के विषय में जितना लिखा जाए उतना कम है। बेहतरीन लेख नीतू जी 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंसहमत ....शुक्रिया सुधी जी 🙏
हटाएंउत्तम आलेख
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुज्ञ जी 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर और सटीक आलेख👏👏👏👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार वृंदा जी 🙏
हटाएंPlease Read Hindi Stoay and Other Important Information in Our Hindi Blog Link are -> Hindi Story
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार लेख,
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार ,लाजवाब लेख
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