गीत
आँखे भर-भर आती है
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
कितने किस्से रक्त सने से, आँखे भर-भर आती है।
अश्रु धार फिर कण्टक पथ का, जल अभिषेक कराती है।।
व्यंग्य कसावट लेकर निकले, माता सी धुकती दिखती।
भोर काल में पूर्व दिशा से, रात सदा छिपती दिखती।
और हरण कर बल तारों को, अहम दिखे शशि का लज्जित।
चिड़ियों की चहकों पर आते, होते जब सूर्य सुसज्जित।
दिवस मिले इस दिनकर से जब, खुशियां गीत सुनाती है।
अश्रु धार फिर कण्टक पथ का, जल अभिषेक कराती है।।
तिमिर संकुचित ज्यूँ दिनकर से, हर्ष कष्ट को खो देता।
मत गिनना पुरुषार्थ यही है, मानव के दुख हर लेता।।
कृष्ण पार्थ की उस जोड़ी ने, इतना ज्ञान दिया सबको।
कर्म मार्ग पर बढ़ते जाओ, पय का दान दिया सबको।।
शिथिल इंद्रियाँ बोध दिलाकर, अपना कार्य बनाती है।
अश्रु धार फिर कण्टक पथ का, जल अभिषेक कराती है।।
चाक चले निर्मित घट होता, काल चलाये जन निर्मित।
गीले तन पर लगें थपेड़े, आकृति सुंदर हो चर्चित।।
और बने जन गुल्लक जैसे, जो जीवन भर लेते हैं।
कुछ लटकें पीपल घट जैसे, बनकर भूत चहेते हैं।।
स्वर्णिम युग निर्माण करे नित, ये मानव की थाती है।
अश्रु धार फिर कण्टक पथ का, जल अभिषेक कराती है।।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मंगलवार, 13 जुलाई 2021
आँखे भर-भर आती है....नीतू ठाकुर 'विदुषी'
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