शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

मेरा अक्स आज मुझसे ...... नीतू ठाकुर


मेरा अक्स आज मुझसे , नजरें चुरा रहा है 
कल तक जो जान था वो , अब दूर जा रहा है 

किस बात से खफा है , जो आज यूँ जुदा है 
आँखों को ख्वाब देकर , खुद ही मिटा रहा है 

माना ये दिल नही था , तेरी आरजू में शामिल 
दिले बेरुखी से अपनी , उसे क्यों जला रहा है 

नादान है वो कितना , जिसको खबर नही है 
यादों से ही हूँ जिन्दा , जिन्हें वो भुला रहा है 

बरसों जिसे तलाशा , वही इंतज़ार है वो 
मेरे दिल को यूँ रुला के , जो मुस्कुरा रहा है 

तुम पर यकीन करना , शायद खता थी मेरी 
दिल फिर भी कह रहा है , वो कुछ छुपा रहा है 

ग़मे ज़िंदगी हमारी , जिसे छोड़ आये तन्हा 
वीरान दिल का साया , हमें फिर बुला रहा है 

मेरी साँस थम रही है , ये वजूद मिट रहा है 
मुझे फिर भी लग रहा है , वो गले लगा रहा है  

 - नीतू ठाकुर 


शब्दों के प्रेम समर्पण से... नीतू ठाकुर 'विदुषी'

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