मेरा अक्स आज मुझसे , नजरें चुरा रहा है
कल तक जो जान था वो , अब दूर जा रहा है
किस बात से खफा है , जो आज यूँ जुदा है
आँखों को ख्वाब देकर , खुद ही मिटा रहा है
माना ये दिल नही था , तेरी आरजू में शामिल
दिले बेरुखी से अपनी , उसे क्यों जला रहा है
नादान है वो कितना , जिसको खबर नही है
यादों से ही हूँ जिन्दा , जिन्हें वो भुला रहा है
बरसों जिसे तलाशा , वही इंतज़ार है वो
मेरे दिल को यूँ रुला के , जो मुस्कुरा रहा है
तुम पर यकीन करना , शायद खता थी मेरी
दिल फिर भी कह रहा है , वो कुछ छुपा रहा है
ग़मे ज़िंदगी हमारी , जिसे छोड़ आये तन्हा
वीरान दिल का साया , हमें फिर बुला रहा है
मेरी साँस थम रही है , ये वजूद मिट रहा है
मुझे फिर भी लग रहा है , वो गले लगा रहा है
- नीतू ठाकुर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-02-2019) को "हिंदी की ब्लॉग गली" (चर्चा अंक-3235) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाजवाब सखी बहुत उम्दा बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंअति सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह !!सखी बहुत सुन्दर लाज़बाब
जवाब देंहटाएंसादर
सौंदर लेखन आदरणीया नीतू जी। शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब। अप्रतिम।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर..... बहुत लाजवाब...
जवाब देंहटाएंलयबद्ध ,सुन्दर शब्दविन्यास से सजी बेहतरीन प्रस्तुति।
वाह शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/02/107.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..... , लाजबाब..... सादर स्नेह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब है ... अलग अंदाज़ है ... कई बार इंसान को खुद से पीछा छुड़ाना ही मुश्किल हो जाता है ...
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंलाजवाब
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