पा लेना ही प्रेम नहीं हो सकता है,
सब कुछ खोकर भी क्या प्रेम पनपता है?
प्रश्न किया जब जब मेरे मनमीत ने
उत्तर देने जन्म लिया एक गीत ने
जीवन की परिभाषा क्या है क्योँ जानें ?
सत्य असत्य के भेद को क्यों हम पहचानें?
जीवन को ही बना दिया है प्रश्न चिन्ह
जीवन जीने की दुनिया की रीत ने
बनती और बिगड़ती रिश्तों की डोरी
बंधन मुक्त हुए हैं सब छोरा-छोरी
शिष्टाचार भुला बैठी है ये दुनिया
बागी बना दिया तुमको इस प्रीत ने
उसकी खातिर सदियों तक मै हारा हूँ
वो मेरा सपना, मै उसका सहारा हूँ
कभी धरा से कदम उखड़ने मत देना
जुदा किया सबसे उसको उस जीत ने
इज्जत की परवाह रही न अब जग को
दौलत की चाहत जागी है अब सब को
प्रश्न का उत्तर प्रश्न नही हो सकता है
यही सिखाया कुदरत के संगीत ने
- नीतू ठाकुर
प्रश्नो का अम्बार लगा है
जवाब देंहटाएंउत्तर किसके देऊँ मै
प्रश्न पूछता है दिल मेरा
सैनिक पत्थर क्यु खाता
है बंदूक हाथ फिर भी
क्यू ना उसे चलाता
संस्कार को छोड़
पुत्र क्यू कू मारग पर जाता
प्रश्नो का अम्बार लगा है
दिल उत्तर ढूंढ ना पाता
आदरणीय नमन ,
हटाएंबहुत सूंदर पंक्तियाँ ,
बहुत बहुत आभार आप की शानदार प्रतिक्रिया का,
अपना आशिर्वाद यूँ ही बनाये रखिये यही निवेदन
सादर वन्दे आदरणिया अनुजा आपको मेरी टिप्पणी पसंद आयी
जवाब देंहटाएंआप का सदैव स्वागत है
हटाएंवाह!!नीतू , बहुत खूब लिखा ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-02-2017) को "त्योहारों की रीत" (चर्चा अंक-2890) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ! बहुत बढ़िया नीतू जी ! सार्थक चिंतन !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंसुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आप का।
हटाएंजब प्रश्न का उत्तर प्रश्न हो तो वहाँ सदैव संशय रहेगा प्रेम नहीं . सुंदर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंनिमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रश्नों का गीत...
बहुत बहुत आभार
हटाएंसही है की प्रश्न का जवाब प्रश्न नहि ...
जवाब देंहटाएंपर प्रश्न हो ही क्यों ... आज के समय में क्या साथ है क्या प्रेम है ... इसकी खोज ही क्यों ...
सुंदर प्रतिक्रिया
हटाएंबहुत बहुत आभार
बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंअद्भुत,शानदार अभिव्यक्ति !
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