मापनी -11/14
आँगन हँसा अपना
सजी दीवार मुस्काई
दुल्हन बनी तितली
नई खुशियाँ कई लाई
हल्दी सजी तन पर
महावर पाँव को चूमे
ढोलक कमर कसती
अटारी द्वार भी झूमे
परदेस की चिट्ठी
हमारे गाँव में आई
चूड़ी खनकती है
इशारों में करे बातें
आँखों सजा कजरा
जगाती संग में रातें
मिश्री घुली बोली
घटा बन प्रीत की छाई
इठला रही बाती
लिपट कर दीप से बोली
ये ज़िन्दगी मेरी
तुम्हारे नाम की हो ली
गाने लगी चौखट
सुहानी भोर हर्षाई
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
बहुत सुंदर सृजन 👌👌👌 बोलते हुए बिम्ब 👌 नव्यता का दुशाला ओढ़े हुए एक और सम्मानित रचना पढ़ने योग्य रचना कल्पना की बंगाल की खाड़ी की यात्रा सुखद परिणाम देती अच्छे बिम्ब रूपी रत्न खोजने में सफल सिद्ध हुई। सुंदर जमे हुए कथन .... आकर्षक शीर्षक 👌👌👌 बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं 💐💐💐
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबिम्बों से सजा हुआ नवगीत 👌👌बेहद खूबसूरत सृजन सखी 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर् और सशक्त गीत।
जवाब देंहटाएं