ऐसी मधुर मधुर धुन छेड़ रहें हैं
जमुना तट पर गिरधारी
झूमे गोकुल नगरी सारी
कान्हा ऐसी तान सुनाये
सुध बुध सबकी हरता जाये
झनक रही राधा की पायल
पिया मिलन की प्यास जगाये
ऐसी मधुर मधुर..........
बरस रहें हैं पुष्प गगन से
जैसे कोई सेज सजाये
पुष्प लता बन बैठी झूला
प्रेम रंग में डूबी जाये
पकडे कलाई आँचल खींचे
गोपियन को बाहों में भींचे
नटखट कान्हा तोरी नजरिया
राधा खड़ी है अँखियाँ मींचे
ऐसी मधुर मधुर..........
तोड़ के आज शर्म के पहरे
कान्हा की बाहों में झूमे
देख रही है एक टक राधा
कान्हा के मस्तक को चूमे
पवन दीवानी बहती जाये
राधा के आँचल को उड़ाये
शर्म से पानी पानी राधा
आज श्याम में रही समाये
ऐसी मधुर मधुर..........
झूम रहे है सब मस्ती में
देवों के भी मन ललचाये
कान्हा तेरी अद्भुत लीला
जैसे स्वर्ग धरा पर आये
खुशबू से महका वृन्दावन
कान्हा जब जब रास रचाये
देख के ऐसा दृश्य मनोरम
समय चक्र भी थम सा जाये
ऐसी मधुर मधुर..........
- नीतू ठाकुर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंवाह!!!नीतू जी ,बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सुंदर प्रतिक्रिया।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-12-2017) को
जवाब देंहटाएं"लाचार हुआ सारा समाज" (चर्चा अंक-2820)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
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