मै पहले जब घर आता था
वो मंद मंद मुस्काती थी
नाजुक सी अपनी हथेली से
प्याली मुझको पकड़ाती थी
कैसा था दिन प्रीतम बोलो
कह कर कितना बतलाती थी
मीठी मीठी उन बातों से
दुःख को मेरे हर जाती थी
हर रात पंच पकवान बनें
वो कितना मुझे खिलाती थी
मुझ जैसे अदना इंसान को
जैसे भगवान बनाती थी
पर मोबाइल ने आँगन में
अब ऐसी आग लगाई है
की अपनी ही बीवी मुझको
अब लगने लगी पराई है
जब देखो तब मोबाइल पर
वो घंटों बातें करती है
कब आता हूँ कब जाता हूँ
वो अनजानी सी रहती है
जब भूक लगे तो वो मुझको
अब रेस्टोरेंट ले जाती है
और सेल्फी लेकर दुनिया को
वो अपनी छवि दिखती है
अब चाय पिलाना भूल गई
मन एक एक पल को तरसा है
इस कदर प्यार पत्नीजी का
अब मोबाइल पर बरसा है
- नीतू ठाकुर
वाह!!नीतू जी ,बहुत खूब।एकदम सही कहा आपने .....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआप की प्रतिक्रिया हमेशा ही हौसला बढाती है
आप ने मेरे हर तरह के लेखन को
अपनी प्रतिक्रिया से नवाजा है
इसके लिए आभार एक छोटा शब्द है
सटीक व्यंग
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंexcellent post, Online book publisher India
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंहाय रे मोबाइल की रुसवाइया
जवाब देंहटाएंपास होकर भी बीवी से हुई दूरियाँ
उस पर संकट हमने ही कुल्हाड़ी पे पाँव दे मारा
आफिस से बतियायेंगे जासे मोबाइल दिला डाला !
अब तो भय्या जब भी फोन करो ये आवाज है आती
सामने वाला व्यस्त है यहीं बात तीर सी चुभ जाती !
बहुत बहुत आभार सखी सुंदर प्रतिक्रिया।
हटाएंवाह्ह...बहुत खूब...कमोबेश यही हाल है आज शायद।
जवाब देंहटाएंविचारणीय विषय पर सुंदर रचना लिखी आपने प्रिय नीतू।
बहुत बहुत आभार सखी सुंदर प्रतिक्रिया।
हटाएंबहुत ही रोचक शब्दों में पिरोई बेचारे पतिदेब की अनकही उलझन ? बहुत खूब !!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंमन खुश कर गई आप की प्रतिक्रिया।
इंटरनेट और सोशल मीडिया से आपसी प्यार और स्वाभाविक तवज़्ज़ो को ग्रहण लग गया है। हम सब कहीं ना कहीं इससे ग्रसित हैं। बहुत बढ़िया रचना। wahhh
जवाब देंहटाएंआदरणीय धन्यवाद आशीर्वाद बनाये रखें।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-12-2017) को "राम तुम बन जाओगे" (चर्चा अंक-2821) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय धन्यवाद आशीर्वाद बनाये रखें।
हटाएंरोचक ...
जवाब देंहटाएंमोबाइल लगता है आज की जरूरत बन गया है सबकी ... आपने रोचक अंदाज़ से बुना है रचना को ...
बहुत बहुत आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंवाह वाह !इतनी अच्छी तरह से एक वैसा पुरूष जो अपनी पत्नी के मोबाईल प्रेम से परेशान है, की मनोदशाओं को प्रस्तुत किया है आपने।अति उत्तम रचना।
जवाब देंहटाएं