शनिवार, 23 दिसंबर 2017

तुम्हें मेरी याद आयेगी न ?...नीतू ठाकुर

सच कहो तुम्हें मेरी याद आयेगी न ?
मेरे साथ हर पल जिया है तूने 
तेरे गम और ख़ुशी का साक्षीदार हूँ मै 
आज आकर इस आखरी मक़ाम पर 
बहुत बेबस और लाचार हूँ मै 
मिटना ही मुकद्दर था चंद सांसे ही बची हैं 
और तेरे चेहरे पर अनजानी हंसी है 
देखता हूँ मौन खड़ा इन खुशियों के बाजार को 
भुला रहे हैं सब लोग मुझ जैसे बेकार को 
सब को इंतजार है आने वाले कल का 
किसको है ख्याल इस मिट रहे पल का 
मिट रहा हूँ पल पल किसी को गम नहीं 
तुम कहते हो वक़्त बेरहम है क्या  तुम बेरहम नहीं ? 
कितना कुछ पाया है मेरी सोहबत में तुमने 
सब कुछ भुला दिया तुमने एक दिन में 
देखते ही देख़ते काल में समा जाऊँगा 
बस एक तारीख बन कर रह जाऊँगा 
तुम्हारा इंतजार करूँगा तुम्हे बुलाऊँगा 
बस एक बार आवाज देना दौड़ा चला आऊँगा 
तुम्हें अपने साथ बीते कल में ले जाऊँगा 
दो पल के लिए ही सही तुमसे मिलकर मुस्कुराऊंगा 
सच कहो तुम्हें मेरी याद आयेगी न ?

           -  नीतू ठाकुर "नीत"



10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर रचना। सच कहता हूँ बार बार इस कविता की याद आएगी.....
    बधाई आदरणीय नीतू जी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-12-2017) को "स्वच्छता ही मन्त्र है" (चर्चा अंक-2829) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    क्रिसमस हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. कब बाज़ारवाद हावी हो जाता है हर चीज़ को देखने का नज़रिया बदल जाता है ...
    इंसानी फ़ितरत हाई ये ... सुंदर रचना ..

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