शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

जब तक मेरा दर्द बिकता रहा... नीतू ठाकुर


जब तक मेरा दर्द बिकता रहा 
मै अश्कों की स्याही से लिखता रहा 
डर लगता था कहीं बेमोल न हो जाऊँ 
इसलिए यादों की चक्की में पिसता रहा 
जाता रहा दफ़न यादों के बेदर्द शहर में 
जहाँ का हर पल मुझे चुभता रहा 
छिपता रहा खुशियों से
कहीं हस्ती न मिट जाये
दर्द के समंदर में बार बार डूबता रहा 
तन्हाइयों में डूब करमिटाकर खुशियों को 
अपने ही जख्मों को नोचता रहा 
बेनूर जिस्म पथराई आँखे 
दिल से लहू हर पल रिसता रहा 
ऐसी सनक सवार थी ज़िंदगी मिट रही थी 
मै ज़िंदगी से पल पल सीखता  रहा 
लोग वाह वाही करते रहे मेरे जख्मों पर 
मेरा दिल अंदर से चीखता रहा 
जब तक मेरा दर्द बिकता रहा 
मै अश्कों की स्याही से लिखता रहा 

- नीतू ठाकुर 


15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-12-2017) को "काँच से रिश्ते" (चर्चा अंक-2833) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    क्रिसमस हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह ! क्या बात है ! बेहतरीन रचना ! बहुत खूब आदरणीया ।

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  3. 👌👌👌👌👌👌
    अप्रतिम
    कहीँ गहरे उतर गई नज़्म

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    1. बहुत बहुत आभार
      आप की प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ा देती है

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  4. वाह्ह्ह....बहुत खूब।।👌
    हृदय के दर्द भरे भाव को निचोड़कर खूब लिखा आपने नीतू जी।

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार
      आप की प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ा देती है

      हटाएं
  5. बहुत गहरे भाव समटे हुए ,उम्दा रचना नीतू जी।

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  6. वाह वाह रचना ।
    किसी का दर्द सिसकता रहा जमाना न जाने क्यों वाह वाह करता रहा।
    उम्दा! दर्द का नगमा धीमे धीमे बजता रहा।

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    1. बहुत बहुत आभार
      मन को भा गई आप की प्रतिक्रिया

      हटाएं
  7. वाह ...
    दर्द की स्याही में डुबो कर लिखी गहरा एहसास लिए शानदार रचना ..
    नज़्म अपना प्रभाव छोड़ती है ...

    जवाब देंहटाएं

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