खून से लथपथ बेजान जिस्म
रास्ते के किनारे पड़ा था
मंजर बता रहा था वो मौत से लड़ा था
टूटे हुए जिस्म के बिखरे हुए हिस्से
कांच के टुकड़ों की तरह बेबस पड़े थे
बहता हुआ लहू चीख चीख कर दे रहा था गवाही
हम भी कभी इस जिस्म से जुड़े थे
दर्द से चीखती आँखे बहुत छटपटाई थी
कोई तो बात थी जो लबों तक आई थी
पर कौन सुनता उसकी दर्द भरी पुकार
हर तरफ सन्नाटा और गहरी तन्हाई थी
एक मासूम जिंदगी चार चक्कों में समाई थी
जश्न के नशे में चूर अमीरजादों को
गरीबी कहाँ नजर आई थी
उनके लिए एक हादसा था
किसी ने ज़िंदगी गँवाई थी
पथराई आँखों से घूरती वो माँ
पिता ने तो अपनी सुध ही बिसराई थी
कितना मासूम और होनहार था मेरा लाल
फिर किसने उसकी ये हालत बनाई थी
छूता नहीं था शराब को दूर ही रहता था
उसी शराब ने आज उसकी ज़िंदगी चुराई थी
किसी का जश्न किसी के लिए
मौत का पैगाम बन कर आई थी
किसी ने होश खोया था
किसी ने ज़िंदगी गँवाई थी
साल के साथ साथ किसी के
खुशियों की बिदाई थी
- नीतू ठाकुर
वीभत्स,करूण रस के साथ आक्रोश भी जाग उठता है इस रचना को पढ़ने के बाद।
जवाब देंहटाएंयथार्थवादी कविता सफल है प्रभाव छोड़ने में।
बहुत बहुत आभार
हटाएंसुंदर प्रतिक्रिया
बेहतरीन सोचने को विवश करती रचना ..👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंखता किसी और की
सजा मिली किसी और को
अँधेर नगरी चौपट राजा
खड़े देखते इस दौर को !
बहुत बहुत आभार
हटाएंमेरी रचना मन को नहीं लुभाती
पर हर रचना के माध्यम से
एक संदेश देना चाहती हूँ
रचना मेरे लिए मन की बात कहने का माध्यम है
मेरी सोच मेरी कलम से
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-01-2018) को "बाहर हवा है खिड़कियों को पता रहता है" (चर्चा अंक-2842) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
संघातिक!!
जवाब देंहटाएंउफ वेदना का सत्य चित्र लिखित कर दिया आपने सच नशे ने न जाने कितने घर उजाड़े हैं
किसी का जश्न किसी की जानपर बन जाती है और कितनी नृशंस अंत देती हैं कितनी आंखों मे आंसू।
मर्मस्पर्शी रचना नीतू जी।
अंदर तक हिला गई।
शुभ रात्री।
बहुत बहुत आभार
हटाएंसुंदर प्रतिक्रिया
बहुत ही मर्मस्पर्शी.....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत अच्छी रचना !!नीतू जी । किसी की करनी ,किसी मासूम को भोगनी । बहुत मर्मस्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया
हटाएंकितना गजब लिख है नीतू जी...मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआप की प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ा गई
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'गुरुवार' ११ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंअन्याय होते देख दिल में ज़बरदस्त आक्रोश उत्पन्न होता है
जवाब देंहटाएंदिल करता छेड़ दी जाये अन्याय के ख़िलाफ़ जंग ....
अन्याय के ख़िलाफ़ जंग करती आपकी रचना
अति उत्तम
बहुत बहुत आभार
हटाएंमार्मिक प्रस्तुति ! ऐसा भी जश्न क्या ! इंसान, इंसान को पहचानना छोड़ दे !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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