वक़्त की दहलीज़ पर
रोशनी सी टिमटिमाई
रात के अंधियारे वन में
एक खिड़की दी दिखाई
चल ख्वाबों के पंख लगाकर
नील गगन में उड़ते जायें
तारों से रोशन दुनिया में
सपनों का एक महल बनायें
जहाँ बहे खुशियों का सागर
फूलों की खुशबू को समाये
ठंडी ठंडी पुरवइया में
इंद्रधनुष झूला बन जाये
चमक चमक के जुगनू देखो
अंधियारे में राह दिखायें
कोयलिया की तन पे तितली
झूम उठी है पर फैलाये
चमक रहा अंबर में चन्दा
बुला रहा बाहें फैलाये
मुक्त करो अब अपने मन को
थमा वक़्त गुजर न जाये
- नीतू ठाकुर
वाह वाह अप्रतिम नाजुक सी कोमल भावों से महकती रचना।
जवाब देंहटाएंशुभ दिवस ।
बहुत बहुत आभार
हटाएंआप तो माहिर है इस फन में आप की तारीफ पाकर रचना पूर्ण हुई।
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
जवाब देंहटाएं( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 14-12-2017 को प्रकाशनार्थ 881 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
बहुत बहुत आभार लेखन सार्थक हुआ
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 12 - 2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2817 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार लेखन सार्थक हुआ
हटाएंबहुत ख़ूब। बहुत प्रेरणादायक।। wahhh
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआप की प्रतिक्रिया हौसला बढ़ा जाती है
बहुत ही सुन्दर व कोमल भाव रचना का
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआप की प्रतिक्रिया हौसला बढ़ा जाती है
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार लेखन सार्थक हुआ
हटाएंवाह अनुपम भाव ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार लेखन सार्थक हुआ
हटाएंबहुत सुंदर रचना नीतू जी,सकारात्मकता प्रवाहित हो रही है।
जवाब देंहटाएंआपकी लयात्मक रचना का जवाब नहीं होता।
अप्रतिम...👌👌
बहुत बहुत आभार
हटाएंएक अलग अनुभव,एक नई सोच
आसान नहीं था अनजाने से रास्तों पर चलना
पर कोशिश रंग लायी और आप की प्रतिक्रिया ने मोहर लगाई
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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