नही जानती हूँ मै उसको
जिसने ये ब्रह्माण्ड बनाया
अगणित रंग बिखेरे जिसने
सुंदरता का अर्थ बताया
दूर तलक फैले अंबर को
चंद्र ,सूर्य, तारों से सजाया
अग्नि ,जल, वायू ,पृथ्वी दे
जग को रहने योग्य बनाया
नही जानती हूँ मै उसको
जिसने सप्त सुरों को जाया
पत्थर में भी ध्वनी बसाई
सब के तन में प्राण समाया
पर जो भी है वो शक्तिमान है
जिसका गुण तो सिर्फ दान है
ढूंढ नही पाये हम उसको
कारण उसका अल्प ज्ञान है
स्वार्थ में डूबा लोभ नही जो
जबरन खुद को श्रेष्ठ बताये
छोड़ दे जग में तन्हा उसको
जो उसकी स्तुति न गाये
इतना सूक्ष्म नही हो सकता
जो धर्मों में बंटता जाये
खुद की सत्ता स्थापन हेतु
हमको अपना दास बनाये
इतना क्रूर नही हो सकता
किसी की अस्मत दांव लगाये
उल्टे -सीधे नियम बनाकर
जग में अपना भय फैलाये
भेद भाव से सदा परे है
कभी किसी का धर्म न पूछे
पशु ,पक्षी या वृक्ष, लतायें
सब को एक सरीखा सींचे
कुछ तो सोच रहा होगा वो
देख के पागल दुनिया नीचे
रक्षण हेतु सदा है तत्पर
चाहे हम उसको न पूंछे
- नीतू ठाकुर
अरे वाह! बहुत सुन्दर रचना!!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का इस प्रतिक्रिया के लिए।
हटाएंवाह्ह्ह.... बहुत सुंदर रचना प्रिय नीतू,
जवाब देंहटाएंसत्य का आईना दिखलाती एक सार्थक संदेश देती सुंदर रचना👌👌👌
ईश्वर ने इंसान बनाया, इंसानों ने धर्म
धर्म की आड़ में प्रपंच रचे,ये कैसा है कर्म?
बहुत बहुत आभार सखी श्वेता जी... शानदार प्रतिक्रिया ।
हटाएंवाह्ह्ह.... बहुत सुंदर रचना प्रिय नीतू,
जवाब देंहटाएंसत्य का आईना दिखलाती एक सार्थक संदेश देती सुंदर रचना👌👌👌
ईश्वर ने इंसान बनाया, इंसानों ने धर्म
धर्म की आड़ में प्रपंच रचे,ये कैसा है कर्म?
बहुत बहुत आभार सखी श्वेता जी।
हटाएंअति सुन्दर भाव सखी नीतू जी ....उस रचेता को अद्भुत भाव समर्पित करता लेखन बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रतिक्रिया दी आप ने रचना के मर्म को समझा ।
सुंंदर शब्द और भाव उत्तम..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखती है..
बहुत बहुत आभार,
हटाएंआप की प्रतिक्रिया पढ़कर अपार हर्ष हुआ।
अनमोल भावो से सजी सुंदर रचना,अलब्ध और लब्ध की सूक्ष्म सीमा रेखा बताती है कि कही एक शक्ति है और आपने बहुत सुंदरता से उसे एक चेतावनी देकर समझाया।
जवाब देंहटाएंअतुलनीय रचना।
आप ने सराहा लेखन सार्थक हुआ। आभार सखी।
हटाएंशानदार प्रतिक्रिया हमेशा की तरह हौसला बढ़ा गई।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-05-2018) को "जिन्ना का जिन्न" (चर्चा अंक-2965) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आदरणीया मेरी रचना को मान देने हेतु बहुत बहुत आभार।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-05-2018) को "जिन्ना का जिन्न" (चर्चा अंक-2965) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आदरणीया मेरी रचना को मान देने हेतु बहुत बहुत आभार।
हटाएंनीतु,ईश्वर को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया हैं आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार । सुन्दर प्रतिक्रिया।
हटाएंसुंदर रचना नीतू जी
जवाब देंहटाएंआभार सखी ....शानदार प्रतिक्रिया ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार सखी।
हटाएंप्रतिक्रिया हौसला बढ़ा गई।
बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रतिक्रिया... आप की प्रतिक्रिया बहुमूल्य है
ईश्वरीय सत्ता को माँ लेना ही उचित होता है ..।
जवाब देंहटाएंवही है जो सब का संचालन करता है ... ऊपर बैठा सब देखता है ..
सुंदर रचना है ...
खूबसूरत रचना ! बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएं