रोज मै तुम्हें कितना
इंतजार करवाता हूँ
थक हारकर जब
लौटकर आता हूँ
ज़िंदगी की उलझनों में
खोया खोया सा मै
तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान को
नजरअंदाज कर जाता हूँ
कभी कभी गुस्से में
बहुत कुछ कह जाता हूँ
और तुम्हारे जाने के बाद
अधूरा सा रह जाता हूँ
धधकती मन की ज्वाला से
तुमको जलाता हूँ
निर्दोष होते हुए भी
कितना कुछ सुनाता हूँ
क्यों की तुम ही तो हो जो
समझ सकती हो मेरे जज्बात और
हर पल कोसते परेशान करते मेरे ख़यालात
एक तुम्ही तो हो
जिसे अपना समझ कर
सता सकता हूँ ,रुला सकता हूँ और
प्यार के दो मीठे शब्दों से
मना भी सकता हूँ
जब पड़ जाती है रिश्ते में खटास
तब भी दिल के किसी कोने में
बच जाती है यादों की मिठास
तुमसे मिलने के लिए
दिल बेकरार रहता है
इन आँखों को पल पल
तुम्हारा इंतजार रहता है
मै कुछ भी क्यो न करलूं पर
तुम लौटकर आओगी
ये ऐतबार रहता है
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ
कायम हमेशा प्यार रहता है
एक तुम ही तो हो जो
इस पागल को अपना सकती हो
मेरी हर खता भुलाकर
मेरी खुशियों के लिए मुस्कुरा सकती हो
तुम और सिर्फ तुम ...
- नीतू ठाकुर
दैनिक उलझनों के बीच एक पत्नी का सहयोग एक पति के लिए एक आसरा, एक भरोसा, एक विश्वास,की तुम मेरी हो हमेशा मेरी ही रहोगी,स्त्रैण प्रेम और त्याग को प्रकशित करती आपकी रचना सूंदर है शुभकामनाएं नीतू जी
जवाब देंहटाएंसुप्रिया जी रचना का मर्म समझने के लिए बहुत बहुत आभार।
हटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया।
लाजवाब नीतू जी किसी पुरुष के अंतर मन के भावों को कोई स्त्री इतने सटीक और सहजता से वर्णन कर दे ये एक अद्भुत बात है, क्योंकि कोई पुरुष ये भाव रख तो सकता है पर प्रेसित नही कर पाता।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर रचना सचमुच अद्भुत अद्वितीय।
प्रिय सखी कुसुम जी ह्रदय से आभार।
हटाएंआप ने सराहा लेखन सार्थक हुआ।
शानदार प्रतिक्रिया हमेशा की तरह हौसला बढ़ा गई।
वाह!!नीतू जी , बहुत सुंंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शुभा जी।
हटाएंवाहः बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत बहुत आभार।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-05-2018) को "उच्चारण ही बनेंगे अब वेदों की ऋचाएँ" (चर्चा अंक-2962) (चर्चा अंक-1956) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
जी आभार ।
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ७ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बेहद सुन्दर लाजवाब...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत सुंदर नीतू दी पति-पत्नी के रिश्ते को बड़ी खूबसूरती से चित्रित किया
जवाब देंहटाएंप्रेम के भी कितने रंग होते हैं ...
जवाब देंहटाएंपर प्रेम सच्चा हो तो राह खोज ही लेता है ... दिल से दिल
मिलना ज़रूरी है ... रिश्तों का ताना बाना बनती हुयी रचना ..।
बेहतरीन प्रस्तुति !!
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