गुरुवार, 19 जुलाई 2018

मनवा डोले जैसे हिंडोला ....नीतू ठाकुर


एक तरफ बाबुल की गलियाँ 
एक तरफ संसार पिया का 
किसको थामूं किसको छोडूं 
दोनों हैं आधार जिया का 

आगे कुँवा तो पीछे खाई 
जगने कैसी रीत बनाई 
किस्मत ने क्या खेल है खेला 
मनवा डोले जैसे हिंडोला 

अपनों को क्यों गैर बनालूं 
गैरों को कैसे अपनालूं 
चीर के अपनी माँ का आँचल 
कैसे अपनी शाल बनालूं 

क्यों अरमान मिटा लूँ अपने 
क्यों सपनों को आग लगालूं 
इन पैरों में बांध के बेड़ी 
मन में झूठे स्वप्न सजालूं 

एक तरफ है बचपन सारा 
दूजी  ओर किस्मत का तारा 
भूत ,भविष्य खड़े हैं दोनों 
क्या होगा अंजाम हमारा 

       - नीतू ठाकुर  

30 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का इस प्रतिक्रिया के लिए। आशिर्वाद बनाये रखें।

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  2. वाह एक तरफ है बचपन सारा
    दूजी और किस्मत का तारा 👌👌 बहुत सुंदर रचना

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    उत्तर
    1. प्रिय अनुराधा जी ह्रदय से आभार।
      क्या खूब समझा आपने ...मेरे मन का हर शब्द पढ़ लिया ।

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  3. क्या बात है
    भावनाओं की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति

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    उत्तर
    1. आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का इस प्रतिक्रिया के लिए।

      हटाएं
  4. यथार्थ को अभिव्यक्त कर दिया

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    1. बहुत बहुत आभार अभिलाषा जी ह्रदय से । सुन्दर प्रतिक्रिया।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-07-2018) को "गीतकार नीरज तुम्हें, नमन हजारों बार" (चर्चा अंक-3039) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का मेरी रचना को स्थान देने के लिए । आशिर्वाद बनाये रखें।

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  6. वाह, वाह!!प्रिय नीतू जी क्या खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है !!लाजवाब !!

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  7. वाह प्रिय नीतू जी सुंदर भावाभिव्यक्ति मन को छूती ।

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  8. नारी जीवन के साथ जुड़ी है ये बात ... पर क्यों एक का चुनाव ...
    बदलो इस व्यवस्था को ... मन के इस द्वन्द और सामाजिक स्थिति में फँसे मन का सुंदर चित्रण ...

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    1. बहुत बहुत आभार
      बहुत अच्छी प्रतिक्रिया ।

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  9. थोड़े शब्दों में बहुत ही बड़ी बात कह दी आपने....लेकिन इंसान समझ नहीं पाता...बहुत अच्छी लगी यह नज़्म

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    1. आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का । आशिर्वाद बनाये रखें।

      हटाएं
  10. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  11. बहुत सुंदर रचना दी,
    हर स्त्री के हृदय की बात।

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    1. बहुत बहुत आभार दिपाली जी
      सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये 🙏

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  12. नारी मन का सनातन प्रश्न ! किसको थामूँ किसको छोड़ूँ? पर अब तो बेटियाँ दोनों घरों के रिश्ते और जिम्मेदारियाँ बड़ी अच्छी तरह सँभालने में सक्षम हो रही हैं।

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार मीना जी
      सुन्दर प्रतिक्रिया...बिलकुल सही कहा आप ने जमाना बदल रहा है,

      हटाएं
  13. वाह नितु जी क्या खूब लिखा है | सुन्दर

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  14. वाह नितु जी क्या खूब लिखा है | सुन्दर

    जवाब देंहटाएं

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