एक तरफ बाबुल की गलियाँ
एक तरफ संसार पिया का
किसको थामूं किसको छोडूं
दोनों हैं आधार जिया का
आगे कुँवा तो पीछे खाई
जगने कैसी रीत बनाई
किस्मत ने क्या खेल है खेला
मनवा डोले जैसे हिंडोला
अपनों को क्यों गैर बनालूं
गैरों को कैसे अपनालूं
चीर के अपनी माँ का आँचल
कैसे अपनी शाल बनालूं
क्यों अरमान मिटा लूँ अपने
क्यों सपनों को आग लगालूं
इन पैरों में बांध के बेड़ी
मन में झूठे स्वप्न सजालूं
एक तरफ है बचपन सारा
दूजी ओर किस्मत का तारा
भूत ,भविष्य खड़े हैं दोनों
क्या होगा अंजाम हमारा
- नीतू ठाकुर
वाआआह....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का इस प्रतिक्रिया के लिए। आशिर्वाद बनाये रखें।
हटाएंवाह एक तरफ है बचपन सारा
जवाब देंहटाएंदूजी और किस्मत का तारा 👌👌 बहुत सुंदर रचना
प्रिय अनुराधा जी ह्रदय से आभार।
हटाएंक्या खूब समझा आपने ...मेरे मन का हर शब्द पढ़ लिया ।
क्या बात है
जवाब देंहटाएंभावनाओं की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का इस प्रतिक्रिया के लिए।
हटाएंयथार्थ को अभिव्यक्त कर दिया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अभिलाषा जी ह्रदय से । सुन्दर प्रतिक्रिया।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-07-2018) को "गीतकार नीरज तुम्हें, नमन हजारों बार" (चर्चा अंक-3039) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का मेरी रचना को स्थान देने के लिए । आशिर्वाद बनाये रखें।
हटाएंवाह, वाह!!प्रिय नीतू जी क्या खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है !!लाजवाब !!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शुभा जी।
हटाएंवाह प्रिय नीतू जी सुंदर भावाभिव्यक्ति मन को छूती ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी
हटाएंस्नेह बनाये रखें।
नारी जीवन के साथ जुड़ी है ये बात ... पर क्यों एक का चुनाव ...
जवाब देंहटाएंबदलो इस व्यवस्था को ... मन के इस द्वन्द और सामाजिक स्थिति में फँसे मन का सुंदर चित्रण ...
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत अच्छी प्रतिक्रिया ।
सटीक रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंथोड़े शब्दों में बहुत ही बड़ी बात कह दी आपने....लेकिन इंसान समझ नहीं पाता...बहुत अच्छी लगी यह नज़्म
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का । आशिर्वाद बनाये रखें।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।
हटाएंबहुत सुंदर रचना दी,
जवाब देंहटाएंहर स्त्री के हृदय की बात।
बहुत बहुत आभार दिपाली जी
हटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया के लिये 🙏
नारी मन का सनातन प्रश्न ! किसको थामूँ किसको छोड़ूँ? पर अब तो बेटियाँ दोनों घरों के रिश्ते और जिम्मेदारियाँ बड़ी अच्छी तरह सँभालने में सक्षम हो रही हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी
हटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया...बिलकुल सही कहा आप ने जमाना बदल रहा है,
वाह नितु जी क्या खूब लिखा है | सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया ।
हटाएंवाह नितु जी क्या खूब लिखा है | सुन्दर
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
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