विधिना का लेख लिखित ना हो
मृत्यू का क्षण अंकित ना हो
पर शाश्वत पल हो जीवन का
जब जीवन सूर्य उदित ना हो
जब त्याग के इस नश्वर तन को
मै इस जग से प्रस्थान करूँ
तब अंतिम क्षण हे शिव शंकर
मै बस तेरा ही ध्यान करूँ
गंगा की गोदी में बैठूँ
अंतिम बारी स्नान करूँ
जिस पथ पर अंतिम बार चलूँ
उस पथ का निश्चित स्थान करूँ
उस पथ से ले जाना मुझको
जिस पथ पर कोई पतित न हो
जहाँ सुख समृद्धि वास करे
जिस पथ पर कोई व्यथित न हो
ऐसा एक पल हो जीवन में
जहाँ धर्मांधों का राज न हो
भूखे तन का आक्रोश न हो
मन क्रंदन की आवाज न हो
जहाँ ज्ञान सुधा की वृष्टि हो
और सप्त सुरों का साज बजे
अज्ञान धरा में मिल जाये
साहित्य का सुंदर नाद सजे
उस पथ से ले जाना मुझको
जहाँ श्वेत वस्त्र में सजे हों तन
सज्जनता का उपहास करे
ना दिखे कोई भी कलुषित मन
तब संध्या की चुनरी ओढ़े
जीवित तन का एहसास करूँ
अंतिम बारी नतमस्तक हो
मै इस जग का परित्याग करूँ
- नीतू ठाकुर
वाह!!नीतू जी ,बहुत खूबसूरत भावों से सजी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शुभा जी।
हटाएंआप की प्रतिक्रिया हमेशा ही हौसला बढाती है।
यूँ ही आशीष बनाये रखें।
अद्भुत!! सुंदर शुभ्र भावनाओं का वसन पहन प्रस्थान करूं
जवाब देंहटाएंमन मे न मान होवे प्रभु चरण मे ध्यान होवे जब जीवन उत्थान करूं मै तप से हो शुद्ध काया मन मे ना होवे माया बस ऐसा ध्यान धरूं मै
वाह वाह नीतू जी अप्रतिम अभिराम भावों का समर्पण।
प्रिय सखी कुसुम जी ह्रदय से आभार।
हटाएंजाने-अनजाने अध्यात्म झलक रहा है रचना में।
मुझे अध्यात्म की कोई खास जानकारी नहीं है,
पर आप को तो पर्याप्त ज्ञान है। आप की रचनाओं में सुन्दर सन्देश निहित होता है।आप ने सराहा लेखन सार्थक हुआ।
शानदार प्रतिक्रिया हमेशा की तरह हौसला बढ़ा गई।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-04-2017) को "पृथ्वी दिवस-बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक-2947) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय मेरी रचना को मान देने हेतु बहुत बहुत आभार।
हटाएंआशिर्वाद बनाये रखें।
वाह ..बहुत सुंदर शुभ्र सोच का परिवर्तित रूप।
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक भाव अद्वितीय।
रचना का मर्म समझने के लिए बहुत बहुत आभार।
हटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया।
जीवन की अंतिम यात्रा के पहले की पवित्र भावों से युक्त अभिलाषा....बहुत सुंदर प्रिय नीतू..वाहह👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी श्वेता जी।
हटाएंएकदम सही भाव पकड़ा आप ने। शानदार प्रतिक्रिया देती है आप।
बहुत ही अध्यात्मिक और आलौकिक कामना प्रिय नीतू | सस्नेह --
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार रेणु जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रतिक्रिया दी आप ने रचना के मर्म को समझा ।
बहुत ही सुंदर भाव,आत्मा का परमात्मा से मिलन की सुंदर भावना,धरती के कष्टों से व्यथित मन की पुकार.....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी
हटाएंबहुत अच्छी प्रतिक्रिया .... स्नेह बनाये रखें।
मृत्यु अटल सत्य है। भोलेनाथ से की गई प्रार्थना में समर्पण का विराट संदेश और जीवन को सुखमय बनाने और देखने की लोक कल्याणकारी कामना।
जवाब देंहटाएंसंसार की असारता ज्ञान कराती सुंदर अभिव्यक्ति।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत बहुत आभार रविन्द्र जी।
हटाएंआप की प्रतिक्रिया पढ़कर अपार हर्ष हुआ।
सही कहा आपने ये शब्द भले ही मेरे हों पर हर मन की अभिलाषा है।
कोई नहीं चाहता की जाते वक़्त इस जग को दुखी देखे।
यूँ ही आशीष बनाये रखें ..... धन्यवाद।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत बहुत आभार।
हटाएंबहुत खूबसूरत भाव.संसार से व्यथित मन की करुण प्रार्थना. बहुत सुन्दर रचना नीतू जी. आपकी लेखनी यूँ ही सदा बहार रहे.
जवाब देंहटाएंरचना का मर्म समझने के लिए बहुत बहुत आभार।सुन्दर प्रतिक्रिया।
हटाएंआदरणीय बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मेरी रचना को मान देने हेतु बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंआशिर्वाद बनाये रखें।
वाह ! विराट में महाविस्तार की अंतरात्मा की आत्यंतिक आकुलता!!! अविकारी, त्रिपुरारी को समर्पित अद्भुत आध्यात्मिक उद्बोधन!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सहृदय की अंतिम अभिलाषा....
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक भावों से सजी बहुत ही अद्भुत लाजवाब अभिव्यक्ति
वाह!!
ईश्वर के चरणों में निष्काम वंदन है यह रचना ...
जवाब देंहटाएंईश्वर सब को चरम शांति दे ... सुंदर रचना ...