कितना गुरूर था मुझे अपनी उड़ान पर
पड़ते थे ख्यालों के कदम आसमान पर
जब होश संभाला तो कतरे हुये थे पर
न जाने कितने पहरे थे मेरी जुबान पर
रस्मों रिवायतों में उलझे थे इस कदर
कुछ वक़्त का तकाजा कुछ कौम का असर
कुर्बान कर दी हसरतें हर इम्तिहान पर
कालिख लगाते कैसे अपने खानदान पर
कर ना सके यकीन किसी साहिबान पर
खुद ही बहाये आंसू अपनी दास्तान पर
क्या क्या न गुजरी सोचिये उस बेजुबान पर
हर वक़्त मौत नाचती हो जिसकी जान पर
- नीतू ठाकुर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05.08.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2931 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपका आभार आदरणीय दिलबाग विर्क जी
हटाएंअपने साये तक के रहनुमा बन नही पाये
जवाब देंहटाएंबस नापते रहे पंखों से आसमान खुद परस्ती का
पंख जल गये अपनों को छांव देने मे
आ बैठे मजबूर फिर ठूंठे पनाह गाहों मे ।
वाह वाह बेमिसाल उडान ।
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुन्दर प्रतिक्रिया सार्थक पंक्तियाँ रचना को विस्तार देती हुई।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-04-2017) को "ग्रीष्म गुलमोहर हुई" (चर्चा अंक-2932) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय मेरी रचना का चयन करने के लिये ।
हटाएंप्रिय नीतू आपने हर्र लडकी की करुण दास्तान को शब्द दे दिए |'
जवाब देंहटाएंकुर्बान कर दी हसरतें हर इम्तिहान पर -
कालिख कैसे लगाते अपने खानदान पर |
सार्थक सृजन !!!!!!!!!!!!
आप सब का बहुत बहुत आभार।
हटाएंआप का बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ९ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना को भी मान देने के लिए धन्यवाद
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/04/64.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को भी मान देने के लिए धन्यवाद
हटाएंबहुत ख़ूब रचना मार्मिक
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंजब होश संभाला तो कतरे हुए थे पर
जवाब देंहटाएंन जाने कितने पहरे थे मेरी जुबान पर .........वाह नीतू जी , बहुत खूब
हर पंक्ति पर वाह निकलती है मुख से ...
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