कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर
इज्जत, शोहरत,सुख और शांति किस्तों में लुट जाती है
मिट जाती है भाग्य की रेखा जब मुझसे टकराती है
पावन गंगा जल भी मुझमे मिलकर विष बन जाता है
जो भी पीता है ये प्याला नशा उसे पी जाता है
कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर
मेरी सोहबत में ना जाने कितने घर बर्बाद हुए
छोड़ गए जो तनहा मुझको वो सारे आबाद हुए
ऐसा दोष हूँ जीवन का जीवन को दोष बनाती हूँ
प्रीत लगाता है जो मुझसे उसका चैन चुराती हूँ
कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर
भूले भटके जग से हारे पास मेरे जब आते है
मीठे जहर के छोटे प्याले उनका मन ललचाते है
बाहेक गया जो इस मस्ती में उसका जीवन नाश हुआ
समझ ना पाया वो खुद भी कैसे वो इसका दास हुआ
कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर
गाढे मेहनत की ये कमाई ऐसे नहीं लुटाते है
लड़ते है हालत से डटकर वही नाम कर जाते है
बाहेक नहीं सकता तू ऐसे तू घर का रखवाला है
एक तरफ है जीवन तेरा एक तरफ ये प्याला है
कहती है मुझसे मधुशाला मुझसे इतना प्यार ना कर
मै हूँ बदनामी का प्याला तू मेरा स्वीकार ना कर
-नीतू रजनीश ठाकुर
चली लेखनी सच्चाई पर
जवाब देंहटाएंमन बाग बाग आबाद हुवा
पढ़ कर कविता मधुशाला
सुधरे शायद माँ का लल्ला
जान निशारू मै शब्दो पर
मन मेरा गुलजार हुवा
लाजवाब नीतू जी निशब्द हूं मै असाधारण काव्य और भाव से
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
इज्जत, शोहरत,सुख और शांति किस्तों में लुट जाती है
जवाब देंहटाएंमिट जाती है भाग्य की रेखा जब मुझसे टकराती है
पावन गंगा जल भी मुझमे मिलकर विष बन जाता है
जो भी पीता है ये प्याला नशा उसे पी जाता है।
क्या कहें आपको कवियत्री जी। निःशब्द कर दिया आपने। मैं स्वभावतः छंद प्रिय पाठक हूँ। और आपकी रचनायें भाव प्रवण होने के साथ साथ विशुद्ध छंदमयी होती हैं। पूर्णतः स्वर में हैं आप। भरपूर लुत्फ़ आता है।
मदिरा के दुष्प्रभाव बताती नशे डूबे लोगों को आगाह करती बहुत ही मोहक कविता। wahhhh। एकदम उड़ती बात👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
लुट जाती है किश्तों में
जवाब देंहटाएंशान्ति मन की
सुख घर का...
इज़्ज़त ओ शोहरत
समाज से
एक अच्छी कविता
आदर सहित
एक तरफ है जीवन तेरा एक तरफ ये प्याला है
जवाब देंहटाएंकराल कालकूट गरल तरल और हलाहल हाला है.......बहुत उम्दा रचना!!!!
बहुत खूब मधुशाला ,कहती मुझसे मधुशाला तू मुझसे इतना प्यार न कर मैं हूँ बदनामी का प्याला तू मुझको स्वीकार न कर
जवाब देंहटाएंगाड़े मेहनत की कमाई को मीठे जहर पर खर्च करके अपनी ही बर्बादी का सामान तैयार करता है ,वाह रे मानव अंधा बनकर उजाला ढूंढता है। नीतू जी आपकी रचना बहुत ही सटीक और बेहतरीन है ।