कैसे दीपक ख़ुशी के जलाऊँ पिया,
बिन तेरे आज खुशियाँ मनाऊँ पिया,
सोलह शृंगार से तन सजा तो लिया ,
संग तुम ले गये हो हमारा जिया,
बनके दीपक मै जलती रही रात भर,
एक पल भी हटी ना हमारी नजर,
इस तरह घिर के आई थी काली घटा ,
ऐसा लगता था जैसे ना होगी सहर
कैसे दीपक ख़ुशी के जलाऊँ पिया,
बिन तेरे आज खुशियाँ मनाऊँ पिया...
प्रीत की रीत हमने निभाई मगर,
क्यों ना बन पाई प्रीतम तेरी हमसफ़र,
राह तकते हुए प्राण त्यागेगा तन,
फिर भी होगी ना तुमको हमारी खबर
कैसे दीपक ख़ुशी के जलाऊँ पिया,
बिन तेरे आज खुशियाँ मनाऊँ पिया...
सज गई हर गली सज गया है शहर,
फिर भी खुशियों का होता नहीं क्यों असर,
आस मिलने की लेकर मै निकली मगर,
ये ना जानू की क्या होगा मेरा हशर,
कैसे दीपक ख़ुशी के जलाऊँ पिया,
बिन तेरे आज खुशियाँ मनाऊँ पिया...
- नीतू ठाकुर
दिल छूने वाली रचना.
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