मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

कैसा तेरा प्रेम समर्पण ?....नीतू ठाकुर



सुंदर मुखड़ा चिकनी काया 
देख के तेरा मन भरमाया 
करने चले तुम सब कुछ अर्पण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण ?

शब्दों के तू जाल बिछाये 
झूठे सच्चे ख्वाब दिखाये 
दिखा रहे हो झूठा दर्पण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण ?

जैसे कोई जाल बिछाये 
उसमें पंछी फसता जाये 
दावत जैसा है आकर्षण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण ?

जिसके मन को तू न जाने 
गुण और दोष से हो अनजाने 
उसके लिए अपनों का तर्पण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण  ?

जिसका खुद पर नही नियंत्रण 
कौन सुने उसका आमंत्रण 
मन बुद्धि का है संघर्षण 
कैसा तेरा प्रेम समर्पण  ?

           - नीतू ठाकुर 

5 टिप्‍पणियां:

  1. खरी खरी अद्भुत रचना।

    मन की कलुषिता का
    आत्म उत्कर्षण
    देह सौंदर्य का आकर्षण
    कैसा तेरा प्रेम समर्पण।
    सत्य की फटकार आपकी सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार
      अंधों के लिए ऐनक है
      भाषा थोड़ी कड़वी है पर इतना तो बनता है

      हटाएं
  2. उसके लिये अपनों का तर्पण
    कैसा तेरा प्रेम समर्पण।।

    वाह वाकई बहुत ही खरी खरी कहती रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार
      मीठी चाचनी में जहर पिलानेवालों के लिए कड़वी दवाई

      हटाएं

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