ग़ज़ल
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
2122 2122 2122 212
याद जिसकी आज भी रातों जगाती है मुझे
वो मेरी माँ की महक कितना रुलाती है मुझे
सो रही है प्यार से मिट्टी की चादर ओढ़कर
आज भी माँ क़ब्र से लोरी सुनाती है मुझे
दूर अंबर में बसेरा है मेरे माँ का मगर
आज भी वो दिल के कोने में बसाती है मुझे
भूख से बेज़ार होकर जब पुकारा है उसे
भीगी पलकों से निहारे थपथपाती है मुझे
जब कभी तन्हा हुआ ये दिल ज़माने से खफा
बन के झोका याद का वो गुदगुदाती है मुझे
जब कभी घायल हुआ हूँ दर्द से चीखा हूँ मै
चूम कर माथे को मरहम वो लगाती है मुझे
जब कभी मायूस करती हैं मुझे नाक़ामियाँ
ख्वाब में आकर वही धाडस बँधाती है मुझे
जब कभी आतें हैं तूफाँ घेरने दिल को मेरे
लड़ती तूफानों से आँचल में छुपाती है मुझे
बन के परछाई वो हर पल साथ चलती है मेरे
ख्वाब में विदुषी वो माँ लोरी सुनाती है मुझे
- नीतू ठाकुर 'विदुषी'
आपकी सशक्त लेखनी ग़ज़ल भी लिखती हैं 👌👌👌 वो कौनसी विधा है जो आपकी लेखनी नहीं लिख सकती, बधाई 💐💐💐 निरन्तर आगे बढ़ते रहें 💐💐💐 बहुत सुंदर लिखा है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सब आपके मार्गदर्शन के कारण संभव हो रहा है। स्नेहाशीष बनाये रखिये 🙏🙏🙏
हटाएंबढ़िया ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंकभी तो दूसरों के ब्लॉग पर भी अपनी टिप्पणी दिया करो।
आभार आदरणीय 🙏🙏🙏
हटाएंअवश्य प्रयास करेंगे 🙏🙏🙏
वाह!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण लाजवाब गजल।
शुक्रिया सुधा जी 🙏🙏🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17 -3-2020 ) को मन,मानव और मानवता (चर्चा अंक 3643) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
आभार आदरणीया मेरी रचना को अपने प्रतिष्टित मंच पर स्थान देने के लिए 🙏🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल सखी
जवाब देंहटाएंजीवन भर का सम्बल होती है माँ, उसकी छत्रछाया हमेशा रहती है साथ
जवाब देंहटाएंवाह!नीतू जी ,बहुत उम्दा 👌👌
जवाब देंहटाएं