सोमवार, 9 मार्च 2020

विरह के स्वर बांसुरी के ....नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत
विरह के स्वर बांसुरी के
नीतू ठाकुर 'विदुषी' 

मापनी ~~ 14/14 

स्वर अचानक बाँसुरी के,
यूँ विरह से फूटते क्यों ।
साथ थे जो प्राण बन कर,
आज ऐसे रूठते क्यों॥

1
है बहुत बेचैन धड़कन,
रात बैरन हो रही है।
देख कर व्याकुल हुआ मन, 
क्षुब्ध आँखे रो रही है।
खो रही है कल्पना में,
स्वप्न सारे टूटते क्यों।
साथ थे जो प्राण बन कर,
आज ऐसे रूठते क्यों ?

2
हो रहा निष्प्राण तुम बिन,
मौन साथी बन रहा है।
नौ रसों में डूबकर भी,
भाव खुद में छन रहा है।
साथ जन्मों का रहा जब,
वो सफर में छूटते क्यों।
साथ थे जो प्राण बन कर,
आज ऐसे रूठते क्यों ?

3
गीत लहरें गा रही हैं,
भेद सागर का बताएं।
ये विरह धरती गगन का,
है व्यथित सारी दिशाएं।
आँसुओं की बाढ़ आई,
सब उन्हें भी लूटते क्यों।
साथ थे जो प्राण बन कर
आज ऐसे रूठते क्यों ?

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

2 टिप्‍पणियां:

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