नवगीत
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
कलयुग की द्रोपदी
मापनी~~ 16/14
एक निवेदन सुनो द्रोपदी,
मार्ग श्रेष्ठ दिखलायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी,
कैसे तुम्हें बचायेंगे।
1
शीश झुका यूँ पांडव कुल का,
जग उपहास बनाएगा।
निश्चय जानो रौद्र रूप ही,
सत्य मार्ग दिखलायेगा।
तोड़ शक्ति मर्यादाओं को,
धर्म तुम्हें समझायेंगे
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी,
कैसे तुम्हें बचायेंगे।
2
आज तुम्हारी मौन साधना,
कुल कलंक कहलाएगी।
भंग सती का मान हुआ तो,
विपदा बन कर छाएगी।
विवश खड़ा हैं क्रंदन सुनते,
दोषी वो बन जायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी,
कैसे तुम्हें बचायेंगे।
3
सिंहासन से भीष्म बँधे हैं,
हृदय कौन पिघलायेगा।
स्वांग रचा है भरी सभा ने,
सत्य दास बन जायेगा।
चौपर सार पहेली उलझी,
कैसे वो सुलझायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी,
कैसे तुम्हें बचायेंगे।
4
आँसूं को अंगार बनालो,
दहन करो अब रिपुदल का।
आज रक्त से हाथ सजा लो,
करो नाश मत इस पल का।
अग्नि कुण्ड से जन्मी है तू,
दर्पण तुझे दिखायेंगे।
कलयुग बना कृष्ण की बेड़ी,
कैसे तुम्हें बचायेंगे।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ये उम्मीद की हर दम कृष्ण तुम्हे बचाएगा- जानलेवा है।
जवाब देंहटाएंअदम्य साहस भरने का वक्त है
ताकतवर होने का वक्त है
खुद के वजूद की पहचान खुद बनाने की जरूरत है।
उम्दा रचना।
नई पोस्ट - कविता २
अति उत्तम नीतू जी
जवाब देंहटाएंकलयुग बना कृष्ण की बेड़ी
कलयुग के कल्कि बन आना होगा
हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत खूब।
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रंगों के महापर्व
होली की बधाई हो।
वाह!!!
जवाब देंहटाएंवाह!!, बेहतरीन रचना 👌
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