नवगीत
निर्वासित सिया
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मापनी~ 16/16
सिय निर्वासित पथ निज कानन,
द्वार हॄदय तक खोल रहा था।
पिया नही क्यों व्यथित सिया के
पत्ता पत्ता बोल रहा था।।
1
शंकित शूल दृष्टि जब चुभती,
पग का हर छाला मुस्काया।
त्याग समर्पण के बदले में,
उपहार यहाँ कैसा पाया।
तब देख परित्यक्त सिया को,
कंकड़ खुद से तोल रहा था।
पिया नही क्यों व्यथित सिया के,
पत्ता पत्ता बोल रहा था॥
2
मोह नही जिसको महलों का
परछाई बन सुख दुख बांटा
पुष्प खुशी के अर्पण कर के
खुद की खातिर कंटक छांटा
हुआ भूमिजा आँचल मैला
धूल कणों को घोल रहा था
पिया नही क्यों संग सिया के
पत्ता पत्ता बोल रहा था।।
3
जनक दुलारी जग से हारी
प्रश्न हॄदय को छोल रहा था
शब्दों के ब्रह्मास्त्र चले थे
काल पृष्ठ को खोल रहा था
नियति के जाले में फंस कर
भाग्य अधर में डोल रहा था
पिया नही क्यों संग सिया के
पत्ता पत्ता बोल रहा था।।
4
राज महल भी रोया होगा,
और अयोध्या नगरी सारी।
देख सती की हालत पतली,
रोई जंगल की फुलवारी।
राह पड़े ये कांटे रोये,
अविरल आँसू डोल रहा था।
पिया नही क्यों व्यथित सिया के
पत्ता पत्ता बोल रहा था॥
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3652 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
पिया नहीं क्यों संग सिया के
जवाब देंहटाएंपत्ता - पत्ता बोल रहा !
सीता की अंतर्वेदना की सार्थक अभिव्यक्ति | प्रिय नीतू बहुत ही मार्मिक लिखा आपने | सीता की व्यथा कथा सुन कौन नारी मन विकल ना होगा ? नव संवत्सर और दुर्गा नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर
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