नवगीत
आलिंगन
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मापनी~ 16/14
कुंचित काली अलकें महकी
मधुर पर्शमय अभिनंदन
चंद्र प्रभा सी तरुणाई पर
महका तन जैसे चंदन।।
कजरारी अँखियों के सपने
निद्रा से जैसे जागे
दर्पण में श्रृंगार निहारे
चित्त पिया पर ही लागे
पिया मिलन की आस हँसी जब
सोच आगमन आलिंगन।।
दो तन एक प्राण बन बैठे
तीव्र बजे श्वासों की धुन
मौन अधर पर कंपन थिरके
कहे पलक से सपने बुन
राग छेड़ती वीणा तारें
दौड़ रहा नख तक स्पंदन
तप्त धरा पर बूँद टपकती
धरणी देख रही नभ को
सागर से मिलने को व्याकुल
भूल गई सरिता सबको
गीत गा रही आहें मिलकर
अमर प्रेम का ये बंधन
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
वाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब नवगीत।
बहुत बहुत आभार सुधा जी 🙏🙏🙏
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-06-2020) को "उलझा माँझा" (चर्चा अंक-3735) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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धन्यवाद आदरणीय 🙏🙏🙏
हटाएंसुंदर प्रस्तुति के लिए ढेरों बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं, नित निरन्तर आपकी सशक्त लेखनी सभी रसों को प्रकट करती निर्बाधित रूप से चलती रहे पुनः शुभकामनाएं 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय गुरुदेव 🙏🙏🙏
हटाएं"तप्त धरा पर ......!!!" वाह! अप्रतिम प्रयोग इस सुंदर नवगीत में!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय 🙏🙏🙏
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय 🙏🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी यशोदा दी 🙏🙏🙏
हटाएंबेहतरीन रचना सखी 🌹🌹
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सखी अभिलाषा जी 🙏🙏🙏
हटाएंवाह आदरणीया मनभावन सृजन ।बहुत बहुत बहुत सुन्दर नवगीत 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया पूजा जी 🙏🙏🙏
हटाएंबहुत ही सुन्दर नवगीत ...
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत नवगीत सखी
जवाब देंहटाएंआभार सखी अनुराधा जी 🙏🙏🙏
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