विपदा
क्षण भर ठहर सके जो विपदा, मैं अंतस की बातें कर लूँ।
पिघला दूँ हर टीस हृदय की, अपनों की हर पीड़ा हर लूँ।
जीवन हवन कुंड सा तपता, राख बनाता जो सपनों को
बरसों बीत गए हैं देखे, अपनी आँखों से अपनों को
कर्म गणित उलझा सा खुद में, जोड़ घटा से कुछ तो माने
पुनः भेंट कब संभव होगी, ये तो बस विधिना ही जाने
झीनी स्मृतियों की झोली में, कुछ खुशियों के पल तो भर लूँ
क्षण भर ठहर सके जो विपदा, मैं अंतस की बातें कर लूँ।
घोर तिमिर में ढूंढ रही है, बूढ़ी माँ की अंधी ममता
उसका भार उठा कब पाई, मेरे तरुणाई की क्षमता
बचपन की गलियाँ हैं भूली, उनका कोई चित्र बनालूँ
कर्तव्यों की बंजर भू पर, बोध भरा एक पुष्प उगा लूँ
क्षमा याचना कर लूँ उनसे, शीश चरण कमलों में धर लूँ
क्षण भर ठहर सके जो विपदा, मैं अंतस की बातें कर लूँ।
क्षुब्ध हृदय की नीरवता में, गीत अधूरे बिलख रहे हैं।
मेरी उम्मीदों के सूरज, आतुरता से निरख रहे हैं
पाषाणों सी मौन प्रीत को, भाव पुष्प से कुछ महका दूँ
रूठी रूठी सी हर पीड़ा, झूठी आस बँधा चहका दूँ
वंशहीन होने से पहले, कुलदेवी से अंतिम वर लूँ
क्षण भर ठहर सके जो विपदा, मैं अंतस की बातें कर लूँ।
©नीतू ठाकुर 'विदुषी'
बेहतरीन रचना सखी 👌👌👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनु जी
हटाएंअद्भुत सुंदर सृजन 👌👌👌 आकर्षक कथन के साथ एक सुंदर रचना 👌👌👌बिम्ब भी अच्छे प्रयोग किये हैं अनंत बधाई 💐💐💐
जवाब देंहटाएंसादर नमन गुरुदेव 🙏
हटाएंस्नेहाशीष बनाये रखिए 🙏
लयबद्ध सुंदर सृजन ।बहुत शुभकामनाएं नीतू जी।
जवाब देंहटाएंआभार जिज्ञासा जी
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कविता जी
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