रविवार, 12 सितंबर 2021

हिंदी है निर्धन की भाषा : नीतू ठाकुर 'विदुषी'

 

गीत

हिंदी है निर्धन की भाषा

मापनी ~ 16/16


भूल गया मनु निज वाणी को

ऐसे जकड़ी धन की माया

हिंदी निर्धन की भाषा है

धनिकों ने कब है अपनाया


बिलख रही है निज आँगन में

बिन अधिकार अभागन बनके

इतराती है सौतन इंग्लिश

रूप सजा कर चलती तन के

अगणित पुत्रों की है माता

जिसका है उपहास उड़ाया


परित्यक्ता बन भटक रही है

न्यायालय के द्वारों पर जो

लज्जित सी अपने होने पर

पाषाणी व्यवहारों पर जो

संस्कृत ने जो पौधा सींचा

उस हिन्दी की शीतल छाया।।


सीखो प्राण गुलामी करना

किस संस्कृति ने सिखलाई है

स्वाभिमान का तर्पण कर के

उन्नति कब किसने पाई है

पीछे कुआं सामने खाई

हर बालक अंधा है पाया


नीतू ठाकुर 'विदुषी'

2 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-9-21) को "हिन्द की शान है हिन्दी हिंदी"(4187) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा






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  2. 'स्वाभिमान का तर्पण कर के, उन्नति कब किसने पाई है'... सुन्दर पंक्तियाँ!

    जवाब देंहटाएं

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