नवगीत
सौगंध पुरानी
मापनी 12/12
इक नौका इतराती
झूमी दीवानी सी
हर रेत हुई खारी
अर्णव के पानी सी
तट मौन खड़े दर्शक
वृक्षों की संगत में
केसरिया वर्ण सजे
उजली सी रंगत में
तोड़ी चट्टानों ने
सौगंध पुरानी सी
कुछ बूँदों को थामे
दुर्बल आँचल धानी
पाटल मुरझाया सा
करता है मनमानी
वर्णों की माल सजे
लिख प्रेम कहानी सी
चंदा की परछाई
नदिया के मनभायी
छूकर मुस्काती सी
बदरी नभ पर छाई
यादें भरती झोली
इक रात सुहानी सी
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
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