गुरुवार, 16 जून 2022

गीतिका नई-नई हैं


 गीतिका

मापनी ~ 1212 212 122 1212 212 122


बिछा रही प्रेम पुष्प पथ पर प्रबुद्ध रातें नई-नई हैं।

करे सुवासित तथा प्रकाशित विबुद्ध बातें नई-नई हैं।।


पुनीत संस्कृति सदैव खंडित करे यहाँ पर विमूढ़ जनता।

प्रहार पे फिर प्रहार देती विरुद्ध जातें नई-नई हैं।।


अभी जली भी नही चिता वो बजा रहे ढोल कुछ नगाड़े।

निहारती आँख पूड़ियों को अबुद्ध पातें नई-नई हैं।


सिसक रही रोटियाँ करों में पुकारती कोख आज सूनी।

उजाड़ माँगे करें प्रताड़ित निरुद्ध लातें नई-नई हैं।


सदा छला प्रीत के हृदय को स्पृहा जगाती सुसुप्त मन में।

विकार बन के बरस पड़ी ये विशुद्ध घातें नई-नई हैं।।


बहा रहे दूध नालियों में रहे कुपोषित भविष्य विदुषी।

चिपक रही देह अस्तियों से अशुद्ध आतें नई-नई हैं।।


नीतू ठाकुर 'विदुषी'

11 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी लंबी मापनी पर शिल्प साधना तथा अपनी बात को मात्रा पतन के बिना कह पाना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है

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    1. नमन गुरुदेव 🙏
      सादर धन्यवाद 🙏
      आपके उदाहरण से प्रेरित यह रचना आपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ 🙏

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  2. कठिन मापनी पर अद्भुत सृजन बेहद खूबसूरत

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  3. बेहद खूबसूरत सृजन सखी 👌👌

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  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-06-2022) को चर्चा मंच     "अमलतास के झूमर"  (चर्चा अंक 4464)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  6. बहुत सुंदर गीतिका कठिन मापनी पर सहज सृजन।

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  7. वाह! बहुत बढ़िया सराहनीय सृजन।
    सादर

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  8. उत्कृष्ट प्रस्तुति...👍👍👍

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