शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

रानी पदमावती....नीतू ठाकुर

एक हाथ में विष का प्याला 
एक हाथ में धरी कटार 
आज तजेंगे प्राण मगर 
दुश्मन से ना मानेंगे हार 
क्या समझ रहे थे तुम अबला 
जो हाथों में आ जायेंगे 
हम वीर शेरनी की जाई 
हम तुमको धुल चटायेंगे 
है लाज शरम गहना माना 
घूँघट में शीश छुपाते है 
पर वक़्त पड़े तो बन काली 
रण में तलवार चलाते है 
नासमझ समझ का फेर है ये 
हम दास तेरे हो जायेंगे 
यदि वक़्त पड़ा तो अग्नि पे 
जौहर का खेल दिखायेंगे 
ये हिन्द देश की छत्राणी 
ना कदम हटायेंगी पीछे 
तू कदम बढ़ा के देख जरा 
कुचलेंगें तलवों के निचे 
तुझ जैसे नीच नराधम को 
हम कभी शरण ना आयेंगे  
पग आज बढ़ा के देख जरा 
तुझको औकात दिखायेंगे 
राज महल की दीवारों को 
हम शमशान बनायेंगे 
धरती माँ की आन की खातिर 
अपनी चिता जलायेंगे 
शर्म लुटाके जीने से 
बेहतर होती है वीरगती 
जब तक थे तन में प्राण 
यही कह रही थी रानी पदमावती    
   -नीतू ठाकुर 




20 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह....क्या शानदार ओजपूर्ण अभिव्यक्ति नीतू...
    आनंद आ गया पढ़कर..👌👌👌
    बहुत सुंदर रचना। बधाई स्वीकार करे मेरी।

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    1. प्रिय सखी आप का बहोत बहोत आभार
      आप की सराहना बहुमूल्य है

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  2. ओजपूर्ण सशक्त काव्य..
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहोत बहोत आभार
      आप की सराहना बहुमूल्य है
      बहोत बहोत धन्यवाद

      हटाएं
  3. बहुत प्रभावी ओजस्वी रचना ... नमन है इतिहास की महत्वपूर्ण वीरांगना को ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार
      आप की सराहना बहुमूल्य है
      बहोत बहोत धन्यवाद

      हटाएं
  4. आज कलम को कृपाणो का
    रूप तुम्हे ही देना है
    बहुत हो चुका जौहर अब तो
    ताण्डव तुम को करना है
    रक्त शत्रु का खप्पर मे आज
    तुम्हे ही भरना है
    सुनो शिवानी रण भूमी मे सिँह नाद सा
    अट्टाहस फिर आज तुम्हे ही करना है
    शत्रु के ही मुण्ड माल को
    हार गले का करना है
    विजया तुम हो विजय भवानी
    विजय तुम्हे ही होना है
    पाँव रखो शत्रु की छाती धूल धरा की
    चटा आज फिर नामो निशा मिटाना है
    सुनो शिवानी जौहर तुमको
    आज नही फिर करना है

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    1. आदरणीय,
      बहोत सूंदर रचना,
      आप की प्रतिक्रिया सदा ही कुछ नया लिखने की प्रेरणा देती है,
      आपका बहोत बहोत आभार,

      हटाएं
  5. कुछ कालजयी रचनाएं यथा 'कुंवर सिंह'(मनोरंजन प्रसाद सिंह), 'रानी लक्ष्मी बाई(सुभद्रा कुमारी चौहान) और 'हल्दीघाटी'( श्याम नारायण पाण्डेय) ये सभी एक साथ जी उठे आपकी कविता में ! बधाई!!!! और आभार!!!

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    उत्तर
    1. बहोत सुंदर प्रतिक्रिया,
      पूर्वजों की वीर गाथा का स्मरण करना कारना हमारा कर्तव्य है,
      मेरा लेखन धन्य हुआ आप की प्रतिक्रिया से,
      आभार

      हटाएं
  6. तुझ जैसे नीच नराधम को 
    हम कभी शरण ना आयेंगे  
    पग आज बढ़ा के देख जरा 
    तुझको औकात दिखायेंगे।

    👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
    Wahhhhhh कवियत्री जी। क्या ओज है। क्या रोष है। क्या भाषा है। बहुत बेमिसाल रचना। बहुत शुभकामनाएं

    नस नस में लावा भरने की ये
    ये रुधिर फुलंगों की बातें
    बेख़ौफ़ उठे अरमानों की
    ये शँखनाद की हैं बातें।


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    उत्तर
    1. बहोत सुंदर प्रतिक्रिया,
      मेरा लेखन धन्य हुआ आप की प्रतिक्रिया से,
      आभार

      हटाएं
  7. धारदार रचना. बहुत ही खूबसूरत

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  8. १२वीं लाइन में कुछ शाब्दिक त्रुटी है शायद

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  9. ओजस्विता से भरी भावप्रवण रचना

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  10. प्रिय नीतू खेद है की रचना बहुत देर से पढ़ पायी | माँ पद्मावती राजपूत समाज की ही नहीं पुण्यधरा भारतवर्ष की सक्षम वीरांगना थी | अपने आत्मगौरव के लिए जौहर जैसी परम्परा का निर्वहन कर इतिहास के पन्नो पर उनकी शौर्यगाथा
    स्वर्ण स्क्श्रों में लिखी गयी | उनके आम सम्मान और आत्माभिमान को आपने अपनी ओजपूर्ण रचना में जीवंत कर दिया | आपकी लेखनी को नमन करती हूँ |

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