गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

कैसे समझाएँ.....नीतू ठाकुर


चीरकर पर्बतों को आज चली है मिलने 
बहती नदिया की रवानी को कैसे समझाएँ 

खारे सागर से मिलकर खुद को मिटा लेगी वो 
ऐसी बेखौफ दिवानी को कैसे समझाएँ 

जनता है वो मगर फिर भी है खामोश अभी 
आज सागर का जले दिल तो कैसे समझाएँ 

देखकर आज छलक आई हैं नभ की आँखें 
रो के तूफ़ान मचाये तो कैसे समझाएँ 

हर  तरफ़ प्यार की लहरों का फैलना देखो 
प्यार दुनिया को मिटाये तो कैसे समझाएँ 

इतनी संगदिल तो नहीं थी हमारी कुदरत पर 
आज फ़रियाद न सुने तो कैसे समझाएँ 
                    - नीतू ठाकुर 





15 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय नीतू जी-- जो नदिया सागर की इतनी दीवानी न होती -तो दुनिया सर्वस्व समर्पण की एक अनूठी दास्ताँ से वंचित रह जाती | --- नदिया के बहाने से खूब लिखा आपने | सस्नेह --

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    1. बहुत बहुत आभार... सुंदर प्रतिक्रिया मन खुश कर गई

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  2. नदी को प्रतीकात्मक रूप में सजा कर बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति..👌

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आशीर्वाद बनाये रखें।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-02-2018) को "चोरों से कैसे करें, अपना यहाँ बचाव" (चर्चा अंक-2875) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत खूबसूरती से बता दिया कि कैसे समझााऐं....बेबसी को...

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    1. बहुत बहुत आभार
      सुंदर प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ा गई...

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  5. नदी को केंद्र में रखकर जीवन की विडंबनाओं को बहुत खूब व्यक्त किया है
    वाह
    सादर

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १२ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. खारे सागर से मिलकर खुद को मिटा लेगी वो
    ऐसी बेखोफ दिवानी को कैसे समझाएं
    वाह!!!
    लाजवाब...

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  8. नादिया की अपनी रफ़्तार अपनी रवानगी ...
    कुओं रोक सका है उसे ...
    लाजवाब रचना

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